आधुनिक हिन्दी कहानियाँ | Adhunik Hindi Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) काल्पनिक धृततो में अनुभव नदी होवा भौर इसलिए उनमें स्पतिणविस्परतिशकरा प्रश्न नदीं उठता, यह न समना चादिषए । कवि तथा इत्तलेखक के लिए साक्षात्कार का कॉस्पनिक फू सिद्धान्त परम आवश्यक सिद्धान्त है । झतः शरीर अनुभव यदपि उसे सम्यक्‌ भोतिक साचतात्कार प्रायः नहीं होता, तथापि मानसिक साच्तात्कार उसे अवश्य करना पडता है । यथाथ भौतिक तथ्यों के आधार पर, काल्पनिक युत्त में, लेखक अपने मानसिक जगत्‌ फे भीतर उन सव व्यक्तियों भौर घटना की असंख्य क्रीड़ाएं देखता दे जिनका उसके युत्त भौवन रदता दै ! वास्तव में, इस मानसिक अनुभव में वद उन मनुष्यों और घटनां से कीं अधिक मनुष्यों 'और घटनाओं का साछात्कार करता दै। इनमें से कुछ थोड़े 'दी मनुष्य ओर घटनाएं उसकी स्थृति में रद जाते हैं; शेष सब विस्पृत दो जाते हैं। इस प्रकार काल्पनिक दत्त में स्टति- विस्मृत का दुरा उत्तरदायित्व रवा दै; एक वार मादेव, 'आत्माराम, परिडतजी जैसे छुछ वास्तविक भौतिक धारो में से बहु्तों को विस्ट्रत कर लेखक शेष को पने मानक्षिक जगत्‌ में लाता दे, जहाँ सेन्नी-न्याय से उनके, श्रौर 'अनेक सददचर हो आति हैः नौर दूसरी वार वह इस मानसिक जगत में से पने छ्मत्यन्त संवेदी तथ्यों का संकलन करता है । हसारी सवेदना के मार्मिक कोण पर ही इमारी स्पृति विस्पृति




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