गोभिलगृह्यसूत्रम् | Gobhilagrihyasutram

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Gobhilagrihyasutram by पं सत्यव्रत समश्र्मी - Pt. Satyavrata Samasrami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ॥ पौष्पियड को, उन ने पराशय्यायस को उनने वाद्रायण को उनसे ताशिष्टप्ौर शाटयानको, इन दोनोंने घहुत शिष्यों को पढ़ाया” सामवेद के ब्राप्तण ग्रन्थों की संख्या # प्रसिद्ध भाष्यकार पं» कुमारिल भह अपने सन्त्र वातिक नामक ' ग्रन्थ में इस प्रकार लिखते हैं:-९ ताराइय ( प्रौढ़, महा या पञ्युविंश). २ चडविंश ३ उपनिषद॒ ( छान्दोग ) ४ संहिलोपनिषद्‌ ( जेनिनौय या तलव- कार ), ५ सामविधान, ६ देवताध्याय, 9 आषय शीर ८ वंश ब्रह्मण । इन में से षष्ठविंभ वर्य जो सारुडय ब्राद्यस का परिशिष्ट सात्र हि-दस के सटे का सास अद्भुत ब्रास्मण है, द्शाध्यायी छान्दोग के शेष ८ छाध्याय ढछान्दोग चपनिषद् है, तमत्रक्ार श्रास्तगा का शेष अध्याय केन या तलघकार पनिषद्‌ नास से प्रसिद्ध है । पूर्वाक्त ८ ब्रात््तकों में से शेषोक्त ४ प्राण सास-वेदीय -सनक्रमणी भिर कुक नहीं है। उपलब्ध सामवेदीय ग्रन्थों की सची । ९-सामवद्सन्त्रसंदिता । र-सामसची । ३-शारण्यसंहिता । ४-ला- ट्वायनश्रीतसत्र । प्-अष्टविकृति । दू-विकूलिवल्लो । 5-पनर-सन्त्र । प-सा- सप्रातिशाख्य । ट-सामगायतरुद्री । ९०-ताराइयसडावाह्न एं । १९-अखेय ज्राह्मया । १२-सानविधघानव्रास्पणा । ९३-दवतब्रात्तण । ९४-देवताध्घाय ब्राह्नस । ९५ पन्भररत । ३ जंगल्ाइनगा । १५१-षड्विंशत्राह्मगा । १८-ग्यसंग्रह । ९४-गोसिलग्रहासत्र । २०-यज्ञपरिभाषा । २१९-निदानसुत्र । रर-उपग्रन्थसूत्र । र३-सामप्रकाश । २४-शास्तिपाठ । र्रस्वराडकुश । र६-ना- रदोय शिक्षा । २५-सामपद्‌ संहिता । र८प-सन्ध्यासत्र । २९-स्वानसत्र। +३२०-श्राद्व सत्र यजमान और पुरोहित, या ऋत्विगूगण । यजमान उसे कहते हैं जो स्वयं अपने घर यज्ञानप्तान करते श्नौर ऋत्विक्‌ उस को कहते ह जो निदिष्ट समय में श्चपने या टूमरे के मङ्गल कायं के निभित्त यज्ञ काय्यै सम्पादन करे, पुरोहित' वा ध्युरोधा' मी हसी का नामान्तर है । काल क्रम से यक्ञीय आडम्बर को वृद्धि के साथ २ ऋत्विक लोगों की क्षमता भर संख्या भी बढ़कर, सनातन घाय्यससाऊ या वेदिक ससाज में शीष स्थायय स्वतन्त्र एक श्रेणी में परियात हुयी । पद्चिले सनातन हि *% ब्राह्मणानि हि यघ्यष्ट। सरषटस्यान्यधं यते । छन्दगास्तेषु सवषु न कश्चिन्नियतः ग्वरः ॥२॥ + ( कृमारिल मदृप्रततन्ववात्तिके १। २ ) # यद्यपि सामवेद कौ १००५ शाखां करे भिन्न २ अनेक ग्रन्थ हं परन्ने अदयावधि यही मन्थ मिने हैं #




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