श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार | Shri Ratnakarand Shravakachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
808
श्रेणी :
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No Information available about सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर्तावन
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अन्थ ओर ग्रन्थकार---
मारदीय धर्मोमें जैनघर्मका सबसे महत्व पूर्ण स्थान है, क्य-
कि उसके दिस और अपरिश्रदवाद आदि सिद्धान्त, उनकी
विचार सरसी और 'अर्दिसाके ब्यावदरिक सुव्दर रव सुगम-
रूपका दज ल दज कथनः जसा जेनधमेमे प्म्या जाता है-वेसा
च्मम्यन्न करीं भि उपलन्ध नद होतः? । जैनधमंकीि अर्हिसाके
उदूगमका इविद्न्त बहव द्यी प्राचीन दे उसके प्रवर्तक भगवान
` आदिनाथ अथवा ऋषभदेव- दै जन्द आदि-नह्य मी कदा
जाता है, जौर जिनके सुपुत्र भरत चक्रव्तीँके. नामसे इस देशका
नाम “भारतवषं” भूतलसें मसिद्धिको प्राप्त छुआ है । भारतके सभी
धर्मोपर जं नी अर्दिसाकी छापदहै, इसमें किसीको विवाद नददीं ।
उसनेद्ध लोकम समता समानता थका विश्वप्रेमकी अल्लुपस
घाराको जन्म दिया दे उसका दायरा भी संकुचित नहीं है और
ल वद् केवल मानवॉतक ही सीमित है, किन्तु बह संसारके
प्रत्येक प्राणीसें विश्व भ्ेमसकी भावनाकों उद्धावित करता दे और
उनमें 'छामिनवसेत्रीका संच।रभी करता है. तथा अनेकान्तके व्यव-
दार दार उनके पारस्परिक विसोर्घोका निरसन करता इश्ा उनके
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