प्रेमदर्शन - मीमांसा भाग - 1 | Prem Darshan Meemansa Bhag - 1

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
554 KB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इन्द्र ब्रह्मचारी - Indra Brahmchari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
सव
है । उसमें कर्म की-सी शाष्कता नदीं दै। उसमे ज्ञान की
सी गहनता भी नहीं है ¡ वह तो भक्तं हृदय को प्रेम से
परिपणे, भक्ति से चिभोर च्रौर श्नानन्द्-रस से आसावित
परमानन्द में निमग्न करते की अदु युत क्षमता रखता है ।
भगवताप्नि के लिये, निर्वाण चौर अपवग के लास के
लिये मगवद्धक्ति के समान सरस, सरल रौर सुन्दर साधन
दूसरा नदी दै । दाशेनिक सादित्य में इसी 'भक्तिदन' का
दूसरा नाम श्रेमद्शंनः भा हे ।
यों देखा जाय तो प्रेम और द्शन शब्द का समन्वय
कुछ अटपटा-सा जान पड़ता है; क्योंकि प्रेम हृदय की
रागात्सक भावनाओं का,सार.हे, और दर्शन का आधार
वेराग्य है । विशेषतः भारत के दाशेनिक क्षेत्र में प्रधान
साम्राज्य वैराग्य का ही है'। पूर्ण वैराम्य के बिना दशेन के
प्रृत-त्तेत्र मे प्रविष्ट होने का या दशैन शाल क! दरवाजा
खट-खटाने का अधिकार. भी किसी कोन्हीं दै । इसी
से सांसारिक विषयों के प्रति इस वैराभ्य-भावना को
उद्धावित एवं परिपुष्ट करने के लिये दी दाशनिक
साहित्य में विश्व को एकान्ततः गर्हित, हेय और
पाँच
User Reviews
No Reviews | Add Yours...