जय वासुदेव | Jay Vasudev

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Jay Vasudev  by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लला, कुछ उद्धत एक युवक वीणा बजा रहा था | श्रव. वीणा उसने . . एक किनारे स्व दी है श्रौर बात करने को तैयार है} ` . श्राय तो चमत्कार करते है--रतनाम्बर बोला | । , युवक ने सुश्करा कर उसकी ओर देखा सचमुच उसने चमत्कार किया है, वह जानता है । नहीं तो सामने बैठी हुई लजा में पड़ी किशोरी एकटक अभिनेष्र उसे क्यों देलती रह जाती १ ,. फिर उस दिन. रात को वीणा बजना श्रावश्यकं बात थी श्रौर चाँदनी रात में नीले श्राकाश के नीचे दुपहर का चमत्कार कई शुना अधिक चमक उठा | सत्तास्बर ने सोचा, चाणुक्य का जीवन व्यर्थ गया} दिवाकर पाणिनी के उन सून्ों की बात सोन रहा था जो इस संगीत की तरह मधुर नदीं सही, इस संगीत की तरह अद्ध स्पष्ट अर्थ की गाथा विखेरते है । तभी दूर से भेरी का स्वर हुआ, तीन वार ठरही के गम्भीर घोष से ववँदनी से छा स्तन्ध चन-गप्रांत कोर दिया गया । युवक उस स्वर को सुन कर सुसकराया । क्षण मर में श्राश्रम का य्रांगण सैकड़ों उल्काधारी . श्यश्वारोहियों से भर गया । प्रधान अश्वारोही उतर कर अतिथि के सामने राया । उसने श्रमिवादन किया । ` युवक खड़ा हो गया । रहस्य-भरी दृष्टि एक वार इन्दु पर डालते हुए उसने पूछा--'क्यों, 'वक्रघर, श्राखिर वीणा ने तुम्हें मेरा पता दे ही दियान्‌) वह मुसकराया | “हाँ, आर्य, अमात्य ने हमें इसी ओर मेजा था ) सेना दक्षिण की ओर शझ्मियान करेंगी । और सम्राट्‌ क सेनानायक का इस श्रवसर पर पाटलिपुन्र होना झावश्यक है |?” “धम इस इत्य को मूला नहीं था, चक्र, परन्ठु हमने आकर अच्छा नहीं किया । क्या मेरे लिए श्रश्व है £ --१३--.




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