श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार | Sri Ratnakarand Sravkachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
529
श्रेणी :
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No Information available about सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निवास-विराग वाटिका का निर्माण, श्री कुंदकुंद शोध संस्थान स्थापनां की परिकल्पना, “श्री पं.
सदासुखदासजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व ' पर स्वीकृत शोध प्रब॑ध के लिए शोधकर्ता विद्वान को 21000)
सन्मान राशि एवं विशेष अभिनंदन की योजना आदि विविध कार्यक्रमों के माध्यम से ट्रस्ट अपने धर्म
प्रचार उद्देश्य की पूर्ति के लिए कृत संकल्पित है । शोध प्रबंध पर कार्य प्रारंभ हो चुका है ।
श्री पं. सदासुखदास दिगम्बर जैन सिद्धांत विद्यालय जयपुर की स्थापना
महामनीषी विद्वान श्री पं. सदासुखदासजी द्वारा जिनधर्म के विश्वव्यापी प्रचार एवं समर्पण को
चिर जीवित रखने की पावन भावना से अनुप्राणित होकर ट्रस्ट ने गत वर्ष श्री कुंदकुंद कहान दि.
जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट बम्बई के अन्तर्गत संचालित श्री टोडरमल दि. जैन सिद्धांत महाविद्यालय जयपुर
की उपशाखा के रूप में श्री पं. सदासुखदास दि. जैन सिद्धांत विद्यालय जयपुर की स्थापना का महत्त्वपूर्ण
कदम उठाकर उस पवित्र शृंखला को ठोस, स्थायी एवं रचनात्मक दिशा प्रदान की है ।
इस विद्यालय के माध्यम से 25 छात्रों के भोजन, निवास शिक्षण आदि का पूरा खर्च कायमी
रूप से वीतराग विज्ञान स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वहन करेगा ।
श्री पं. सदासुखदासजी की सम्पूर्ण जीवनभर की धर्मप्रचार की पावन अभिलाषा एवं पावन संकल्प
को भविष्य के लिए सदा जीवंत रखने कौ दिशा मेँ उठाए गए इस कदम से दि. जैन वीतराग धर्म॑
की पावन पताका युगं युगांतर तक देश विदेशों मरे फहराती रहेगी । मँ जिनवाणी सदा जयवंत रहै
ट्रस्ट का यही उद्देश्य है ।
जनोपयोगी विविध योजनाएँ
लोकोपकारी प्राचीन सेवाभावी संस्था श्री जैन औषधालय अजमेर तथा श्री दिगम्बर जैन औषधालय
कोटा को क्रमश: 2000) प्रतिमाह नियमित आर्थिक योगदान, समय-समय पर नेत्र शल्य दंत आदि
के चिकित्सा शिविरों के संयोजन में विशेष अर्थ सहयोग, असहाय बंधुओं को सहायता आदि विभिन्न
कार्यक्रमों के माध्यम से ट्रस्ट निरन्तर मानव कल्याण के क्षेत्र में भी जागरूक है ।
महान ग्रन्थ श्री रलकरण्ड श्रावकाचार का प्रकाशन
जेन वाङ्मय के महान मनीषी तार्किक चूडामणि परम पूज्य आचार्य श्री समंतथद्र स्वामी की
अद्वितीय रचना ग्र॑थराज श्री रलकरण्ड श्रावकाचार के प्रकाशन पर टृस्ट अपने आप को गौरवान्वित
अनुभव कर रहा है । चरणानुयोग के शास्त्र मे यह सर्वाधिक ख्याति प्राप्त, सर्वाधिक प्राचीन, महत्त्वपूर्ण
सर्वमान्य श्रावकाचार निरूपक महान ग्रंथ है - यह परवर्ती श्रावकाचारों के लिए आधारभूत एवं आदर्श
रहा है । इस भाषा ग्रन्थ में श्री पं, सदासुखदासजी ने भ्रष्ठ तत्त्वज्ञान समन्वित शुद्ध जैनाचार का बहुत
मार्मिक ढंग से निरूपण किया है - निश्चय व्यवहार की कथन शैली का अद्भुत सुमेल आज के |
धार्मिकं वातावरण के लिए बहुत सामयिक एवं उपयोगी है । यह उनके पवित्र जीवन की अनवरत
साधना एवं माँ जिनवाणी के प्रति पूर्ण समर्पण की पुनीत भावना का द्योतक है । ढूंढारी भाषा में लिखित
त च.
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