शाकम्भरी प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में जैनधर्म का योगदान | Shakambhari Pradesh Ke Sanskritik Vikas Me Jain Dharm Ka Yogadan

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Book Image : शाकम्भरी प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में जैनधर्म का योगदान  - Shakambhari Pradesh Ke Sanskritik Vikas Me Jain Dharm Ka Yogadan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्ररतावना [ ३ सकलकीति, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र, ज्ञानशूपण से लेकर नरे्द्रकीति, सुरेन्द्रफीति एव देवेन्द्रकीति जैसे समर्थ एवं प्रभावशाली भट्टारक हुए जो राजस्थान के सास्कृतिक घरातल को पल्लवित करते रहें । ये भट्टारक श्रगाध ज्ञान के धारक होते थे तथा तप एव तेजोमय व्यक्तित्व के वनी होते थे । उन्होंने राजस्थान के सास्कृतिकः विकास मे जितना योग दिया उनसे राजस्थान कभी उण नही हो सकता । इन भट्टारको के प्रमुख केन्द्र थे चाटसू (चम्पावती) टोडारायर्मिह्‌ (तक्षकगढ) अमेर, सागनेर, मारोठ, जोवनेर, नागौर, ग्रजमेर, जयपुर एव श्रौमहावीर्जी । इन्दोने श्रपने विहार से सारे राजस्थान को पावन किया भर महावीर के सिद्धान्तो को जन जनं तक पहु चाया । मोजमावाद (सवत्‌ १६६४) जोवनेर (१७५१) मारोठ (१७६४) सवारईमाघोपुर्‌ (१८२६) अजमेर (१८५२) जयपुर्‌ (१८६१) जंसे नगरो मे विशाल सास्छृतिक प्रतिप्ठा विघानो के माघ्यम से जितने श्रायोजन हुए उन सव मे इन भट्टारकों का प्रमुख योगदान रहा 1 राजस्थान के मन्दिरो में उपलब्ध एव प्रतिप्ठापित ग्रन्थ सग्रहालय भारतीय सस्कृति एव विशेषत जैन साहित्य एय सस्कति के प्रमुस पेन्द्र है । राजस्थान में ऐसे शास्त्र भण्डारो की सख्या संफडो में होगी आर उनमे संग्रहीत पाण्डुलिपियो की सरया तो लायो में होगी । राजस्थान के इन भण्दारों में तीन लाख से भी अधिक ग्रन्थो क्रा सग्रह उपलब्ध होता है। येशारन भण्डार प्रत्येक ग्राम एव नगर में जहा भी मन्दिर हैं, स्थापित है श्रौर भारतीय वाद मय को सुरक्षित रखने का महान्‌ दायित्व लिए हुए है ऐसे स्थानों मे जयपुर, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर, उदयपुर, श्रजमेर, रिपभदेव, भरतपुर, चू दी एव कुचामन श्रादि नगरों के नाम विशेषत उल्लेखनीय हैं । चास्तव में इन न्ञानभण्डारों ने साहित्य की संकडों झरमूल्य निधियों को नप्ट होने से बचा लिया । श्रकेले जंसलमेर के जान भण्डारो को देखकर कर्नल टॉड, डा० वूहलर, डा० जैफोवी जैसे पाश्चात्य विद्वानू एव भण्डारकर, दलाल जेसे भाउ्तीय विद्वान आण्चयं चकित रह्‌ गये ये श्रौर इन्हें ऐसा श्रनेभव होने लगा था कि मानो उनकी वर्पों की साधना पुरी हो गई हो । यदि इन विद्वानों को उस समय नागौर, अजमेर एव जयपुर के ग्रन्थ भण्डारो को देखने का सौभाग्य मिल जाता तो सभवतत उनका साहित्यिक घरोहर को देख कर नाच ऽन्ते श्रौर फिरनजाने जैन भ्राचार्यो की साहित्यिक सेवाग्रो पर कितनी श्रद्धान्जलियाँ श्रपित करते । स्वय लेखक को राजस्थान के १०० से भी श्रधिक ग्रन्थ भण्डारो को देखने का अवसर प्राप्त हुआ है लेकिन इन भण्डारो की गरिमा एव महत्ता का पता लगाना कठिन है । यदि मुसलिम युग मे वर्मान्व शासको द्वारा इन शास्य भण्डारो का विनाश नही किया जाता तथा हमारी स्वय की लापरवाही से संकटो हजारो ग्न्य चूहौ, दीमक एव |




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