लघुशांतिसुधासिंधु | Laghushantisudhasindhu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री कुन्थु सागर जी महाराज - Shri Kunthu Sagar Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
गरेथनिर्पाण,
इसी प्रकार पूज्यश्रीने अपनी विद्वत्ता द्वारा जनताका स्थायी
उद्धार दो इस देतुप्ते आजतक अनेक प्रंथोंका निर्माण किया है |
पूञ्यवर्थने भमीतक उत्तमोत्तम तीसो प्रंथोंका निर्माण किया है ।
वे प्रथ इतने लोकप्रिय हुए दे कि आचार्यश्रीके भक्तोंने उनको
इजारोंकी संख्यामें प्रकाशित कर उनका प्रचार किया है । जैन
जेनेतर सभी रोग बहत दिङचस्पीति उन प्रंथोंक। स्राध्याय करते है |
चातुमीस व तीर्थोदधार.
पूञ्यश्रीका चातुर्मास जहा मी इजा है वहा अभूतपूर्व
प्रभावना हुई दे । आपके चातुर्मात्का ही फड दे कि
गुजरातके कई तीर्थोक। उद्धार इभादहै | तारगा क्षेत्रें विशाक
मानस्तम व प्रतिष्ठा महोत््तव, इसी प्रकार पावागद कषेत्रम विशाक
मानस्तम व प्रतिष्ठा पूज्यश्रीके चातुमासके फलस्वरूप हुए हैं ।
इक्ी प्रकार जहर, ईडर वौरह स्थानके चातुर्मा्षमे मी बहते
मदत्वपूर्ण कार्य हुए है | अनेक स्थानमें ब्षोंसे आया हुआ पर-
स्परका वैषम्य पूज्यश्रीके उपदेशसे दूर हुआ । श्यान स्थान परः
संगठन द्ोकर समाज बहुत प्रेमसे कार्य करती हैं । पृज्यश्रीके
बचनोंमें जादू जैसा प्रमाव है| उनके सुंदर मिष्ट दितिमय वचनोंपति
पत्थर जैसा हृदय भी पिघछ जाता है, सामान्य मनुष्योंकी बात दी
क्या है ? इसछिए सर्वत्र प्रेमका संचार दोता दे ।
विषवकल्याण.
इस प्रकार पञ्यश्रौके दिभ्य विहरसे भन्याका महदुपकार
User Reviews
No Reviews | Add Yours...