रोजा लुक्जेम्बुर्ग | Roza Lukzemburg
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand); १: वह कोन थी ? क्या थी!
भ अ - शत
व दाना
प्रथम विरवयुद्ध ( १९१४-१९१८ ) के समय अन्तर्राष्ट्रीय समाजवाद का
यूरोप में जैस दिवालया पिट गया! बड़े बड़े अगड्घत्त समाजवादी नेताओं ने
अपने सभी पुराने सिद्धान्तों और कथनों को, जैसे सात हाथ जमीन खोदकर
नीचे गाड़ डाला और वहाँ के मजदूरों को साम्राज्यवादी ज़िबहसानेमें, अपने पुराने
नेतृत्व की छाठी से हाँककर, कत्छ होने को डाल दिया ! मज़दूरों के अन्तर्राष्ट्रीय भाई
चरे के मन्दिरमे उन्होने, देशभक्ति के नाम पर, एक राक्षसी को घिठा दिया-राक्षसी
जो सून पर जीये, विनाश पर मुस्कुराये !
यूरोप में संहार का.तांडव हो रहा था ! खून की नदियाँ बह रही थीं । उनकी
बीभत्स घारामें मानवता ऊबघ-जड्रूब रही थी ।
यह किसका खून था ! गरीबों का, मजदूरों का । गुर्यघोंके बेटे फोज में भर्ती हो
रहे, या किये जा रहे। जर्मनी हो या पफ्रॉंस, इंग्लैंड हो या रूस, आस्ट्रिया हो या टर्की--
सभी जगह गरीबों के बेटे ! गरीबों के बेटे, शोषितों और उत्पीड़ितों के बेटे, मजूदमों
और मुसीबतजुर्दों के बेटे । वे घर से छुड़ाकर, हटाकर मैदान में खड़े किये
गये--एक दूसरे की गर्दन काटने को, एक दूसरे के कलेजे में छुरी भोकने को । केसा
रूर; निर्मम कमं { सवसे करुणाजनक बात तो यद्द थी कि जिन्हें चाहिये था कि उन्हें
इस कम से दूर रहने का उपदेश दें, वे ही उनके नेता कह रहे थे--' चढ़ जा बेटा;
सूलीपर ! '
इस भयानक अंधकार के युग में, अन्तर्राष्ट्रीय समाजवाद के क्षेत्रमें दो
हस्तियाँ थीं, जिन्होंने सच्चे पथ-प्रद्शन के लिये आकाश-दीप का काम किया ।
एक लेनिन, दूसरी रोजा छक्जेम्बुगं । एक ने रूस के मजदूर को ओर दूसरीने जर्मनी
के मजदूर को सदी ओर सच्ची राह बताई । उनकी आवाज गरीबो तक, जनता तक
नहीं पहुँचने पावे, इसके लिये ज़ार और कसर दोनों ने कुछ उठा नहीं रखा । एक
बेचारा देश से निर्वासित, स्वीज़रलेंड में धूनी जमा रहा था; दूसरी इस जेल से उस
जेलकी कालकोठरियों में तपस्या की ज़िन्दगी काट रही थी !
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