कुब्जा सुन्दरी और दूसरी कहानियाँ | Kubja Sundari Aur Dusari Kahaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य - Chakravarti Rajgopalacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुब्जा सुन्दरी ५
क्षोभ के समुद्र में मानो वह् इव-स गये । उनकी प्रतिज्ञा झूठी
पड़े गई थी, उनका ज्ञान निरथेक सिद्ध हो गया था । उन्हें बहुत ही दुःख
हुआ और उनकी समझ में नहीं आया कि वह इस अपमान को कंसे
सहन करें ।
उन्होंने यों ही. एक किताब उठा ली और उसे पढ़ने की चेप्टा
की, लेकिन मन नहीं लगा । बहुत प्रयत्न करने पर भी वह उस अपमान
की बात को चित्त से नहीं हटा सके । “हे भगवान्, कया मे सचमच पापी
होता जा रहा हूं ? सीताराम !” इस तरह गिड़गिड़ाकर उन्होंने अपने
मान्य देवता का स्मरण क्रिया ओर दया की यानना की।
उस रात उन्हें नीद नहीं आई । उन्हें अपनी मृत पत्नी ओर
बहिन की याद आई और उन्होंने मद्रास छोड़कर अपने गांव चले जाने
का निश्चय किया । लेकिन एकाएंक उन्हे याद आया कि अगठे इतवार
को चिन्ताड़िपेट में कपड़े के बड़े व्यापारी रामनाथ चेद्ियार के मकान
पर गीता का उपदेश देना । ट्सवदेकौ म कंसे तोड़ सक्ताह ?
लेकिन में भाषण दूंगा कंसे ?” इन्ही उलझनों में पड़े-पड़े वह सारी रात
जागते रहे ।
¢
दिरोमणि की छत पर छाते या. चादर का कोई संकेत न देखकर
लड़कियों को बड़ी निराशा हुई। अगले दिन भी कुछ संकेत न मिला ।
लड़कियों को यह सोचकर बड़ा दुःख हुआ कि उनकी चाल चली नहीं ।
“कामाक्षी, अभी हमें एक दिन और इन्तज़ार करनी चाहिए,”
कमला ने कहा ।
“वह हमारे धोखे में नही आ सक्ता, बड़ा चलता हुआ आदमी
है, कामाक्षी ने जवाब दिया।
“कितने की शातं लगाती हो?
्दो स्पयं की।'
उच्छा, दी दिन का वक्त दो ।''
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