सूक्तिस्तबक | Suktistabak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रघुनन्दन शास्त्री - Raghunandan Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सू ्कस्त्वक
साधु कटावन कटिनटे, ज्यौ खरडकी धार।
डगमगाय तो गिरि पर, निःचल उतरे पार ॥ 3 ॥
साधु कटावन कटिन दे, लेवा पेड़ खजूर ।
चढ़े तो चाखे प्रेम रस. गिरे तो चकना चूर ॥ ८ ॥
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहि ।
घन का भूखा जा फिर, सा तो साधू नाहि ॥ £ ॥
सिंहन के लेहड़ नहीं, हंसन की नहिं पांत ।
लालन की नटि वारियां. साधु न चले जमात ॥ १० ॥
वन वन नौ चदन नहीं, सूरगा का दल नादि
सव समुद्र मानती नटी. य। साधू जग माद ॥ ९ ॥
५५ ° ॐ 4 ० सै» भ
चूच्छ कचरे न।ह फल भग्व. नदा न सच नोार |
परमाग्थ के कारन, साघुन 'घरा सरीर ॥ १२ ॥
निराकार की आरसी, साधे ही की देह ।
लखा जो चाहे अलख को, इन ही में लखि लेह ॥ १३ ॥
नहिं सीतल है चन्द्रमा. हिम नहिं सीतल होय ।
कवीरा शीतल सत जन, नाम सनदी साय ॥ 5४ ॥
साध सती आओ सूरमा, ज्ञानी आओ गज-दंत।
पते निकसि न वादहुरे, जा जुग जादि अनन्त ॥ १४ ॥
न क
प्रम्-माक़
लगी लगन छूटे नदि, जीभ चच जरि जाय ।
मोखा कटां अगार मे, जादि चकार चवाय ॥ है ॥
~ . ^ भ कः क कु ले
भक्ति गद चं।गान की, भाव कोइ ले जाय ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...