राहुल निबंधावली | Rahul Nibandhavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की प्रधानता इसी की ओर सकेत करती है। हो सकता है कि वह प्रेमचन्द के बिसी पुर्वन की ही हो । सुर्ति मैंने प्रयाग म्यूजियम में भिजवा दी ।) वहां चटाई पर वेडे हुए जब हम दोनों बात कर रहे थे, तो उस समय मुझे कभी रुपाल नहीं आया था कि यह हमारी अतिम बातचीत है 1 जाड़ों के बीतने के साथ मै तिब्बत गया और वहीं उनके निथवन की खबर मिली । उनकी कृतियों के जितने श्रेप्ठ नायक है, उन्ही की सूर्ति प्रेमचन्द के रूप में मुभे उस दिन सामने दिखायी पड़ी । प्रेमचन्द भारत के अमर लेखक, अमर कलाकार हैं। उन्होंने साहित्यिक भगोरंजन जौर उच्चादर्भ के लिए अस्तःप्रेरणा का ही सफल श्रमाप्त नहीं किया, बह्कि उनकी लेखनी द्वारा २०वी शताब्दी की सादे तीन ददाब्दियों के लोक- जीवन का लोक-इतिहास बड़ी स्पप्टता और ईमानदारी के साथ चित्रित दुआ है, कुछ ही समय बाद जिसके जानने का हमारे पास कोई अच्छा साधन नहीं रह जायेगा । उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा के संक्रान्ति काल के इन सावश्यक पत्रो को लिख कर सुरक्षित कर दिया । शताब्दियां बीतती जायेंगी, प्रेमचन्द की देखी-भाली, खेली-खायी, रोयी-गायी दुनिया का कही पृथ्वी पर पता नहीं रहेगा, उस वक्त पाठकों के लिए, प्रेमचन्द का यहें चित्रण कम मनोरंजक भीर उत्साहवर्वक नही होगा । म्रेमचन्द का विश्व के साहित्यकारों में कया स्थान होगा, इसका अनुमान आप इसी से कर सकते है कि रूम के प्रसिद्ध लेनिनग्राद विश्वविद्यालय में हर साल प्रेम चर्द-दिवम मनाया जाता है, उनके गोदान को सुन्दर कृति समझ कर रूसी भाषा में अनुदाद किया गया है। रूस ने साम्यवादी जगत की ओर से प्रेमचन्द का स्वागत किया है, इसमें सदेहू नही । ही




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