श्रीरामकृष्णवचनामृत भाग - 2 | Shriramakrishnvachanamrit Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
676
श्रेणी :
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No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९ भ्रीरामकरष्णवचनामृत
श्रीरामकुष्ण-भक्ति से ही सब कुछ प्राप्त होता है। जो लोग
बझ-ज्ञान चाहते हैं, यदि वे भक्तिम्मर्ग पकड़े रहें, तो उन्हें ब्रह्मज्ञान भी
हो जाता हे।
«८ उनकी दया रहने पर क्या कभी ज्ञान का अभाव भी होता है ?
उस देश में ( कामारपुकूर में ) धान नापते हैं। जब राशि चुक जाती है,
तब एक आदमी और धान ठेल देता है, इस तरह राशि फिर तेयार हो
जाती है । माँ ही ज्ञान की राशि पूरी करती जाती हैं।
“उन्हें प्राप्त कर ठेने पर पण्डितगण सब घास-पात की तरह जान
पडते हैँ । पद्मलोचन ने कहा था, तुम्हारे साथ अछूतों के घर की सभा में
भी जाऊँगा, इसमे भला हर्ज ही क्या हे ?-तुम्हांस साथ चमार के यहाँ
भी जाकर मैं भोजन कर सकता हूँ ।
“भक्ति के द्वारा सब मिलते हैं। उन्हें प्यार कर सकने पर फिर
किसी चीज का अभाव नहीं रह जाता। माता भगवती के पास कार्तिकेय
और गणेश बैठे हुए थे। उनके गले में माणियों की माला पड़ी थी।
माता ने कहा, जो पहले इस ब्रह्माण्ड की प्रदृक्षिणा करके आ जायगा,
उसी को में यह माला दें दूँगी। कार्तिक उसी समय फोरन ही मयूर पर
चटकर चल दिए गणेश ने धीरे-धीरे माता की प्रदाक्षिणा करके उन्हें
प्रणाम किया। गणेश जानते थे, माता के भीतर ही ब्रह्माण्ड हे। माँ
ने प्रसन्न होकर गणेश को हार पहना दिया। बड़ी देर बाद कार्तिक ने
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आकर देखा कि उनके दादा हार पहने हए बेठे थ।
“मेने मो से रो-रोकर कहा था, (माँ ! वेद्-वेदान्त में क्या है, मुझे
बता दो,-पुरण-तंत्रों में कया है, मुझे बता दो ।”
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उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया है-कितनी बातें दिखाई हैं।
“ सच्चिदानन्द गुरु को रोज प्रातः काल पुकारते हों न? ”
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