तेरापन्थ - आचार्य चरितावलि भाग - 1 | Terapanth - Acharya Charitavali Bhag - 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ` ११
(१०) महान् व्यक्तित्व :-आपके व्यक्तित्व के विषय मे हम जयाचार्यके ही उद्गारो को
प्रकट करेगे :
मुनिवर रे शीयल धरयो नवबाड सू रे, धूर बाला ब्रह्मचार हौ लाल ।
ए तप उक्कृष्टो घणो रे, सुरपति प्रणमे सार हो लाल ॥
मुनिवर रे उपरम रस मांह रह्या रे विविध गुणा री खाण हो लाल ।
एकत्त कर्मं काटण भणी रे, सवेग रस गलताण हो लाल ॥
मुनिवर रे स्वाम गुणां रा सागर रे गिरवो श्रति गम्भीर हो लाल ।
उजागर गुण श्रागलो रे, मेरु तणी पर धीर हौ लाल॥
मुनिवर रे कठिन वचन कहिवा तणो रे, जाण के लीधो नेम हो लाल ।
बहुलपणे नहीं बागस्यों रे, वचनाम्ृत सू प्रेम हो. लाल ॥
मुनिवर रे विविध कठिन बच सांभली रे, ज्यारे मन मे नही तमाय हो लाल ।
तन मन वच मुनि बद्च कियो रे, ए तप श्रघिक श्रथाय हो लाल ॥
मुनिवर रे चौथे श्रारे सांभल्या रे, क्षमा शूरा भ्ररिहत हो लाल ।
विरला पचम काल मेँ रे, हेम सरिषा सन्त हो लाल ॥
मुनिवर रे निरलोभी मुनि निर्मला रे, भ्रार्जव निर श्रहकार हो लाल ।
हलका क्म उपधि करी रे, सत्य वच महा सुखकार हो लाल ॥
मुनिवर रे सयम मेँ शूरा घणा रे, वर तप विविघ प्रकार हो लाल ।
उपधि श्रनादिक मुनि भणी रे, दिलरो हैम दातार हो लाल ॥
मुनिवर रे र्या धून भ्रति भ्रोपती रे, जाणे चाल्यो गजराज हो लाल ।
गुण मूरत गमती घणी रे, प्रत्यक्ष भवदघि पाज हो लाल ॥
मुनिवर रे स्वाम गुणा रा सागरू, किम कहिये मुख एक हो लाल ।
उडी तुक्च श्रालोचना रे, बारू तुझ. विवेक हो. लाल ॥
मुनिवर रे झ्खड श्राचार्य श्रागन्यां रे, तें पाली एकणधार हो लाल ।
मान मेट मन वश कियो रे, नित्य कीजे नमस्कार हो लाल ॥
साझ घणा सन्वा भणीरे, ते दीघो ्रधिक उदार हो लाल ।
गण वच्छल गण बालहों रे, समरे तीरथ च्यार हो लाल ॥
(११) भाचार्यों के चहुमान के पात्र :--आपने तीन आचार्यों के--आचार्य भीखनजी, भआाचार्य
भारीमालजी और आचार्य रायचन्दजी के युग देखें। आपको सभी का स्नेह एवं वहुमान
प्रष्ठा]
आपके दीक्षा लेने के भाव स्थिर होते ही स्वामीजी ने युवाचायं भारीणलजी से फरमाया :
{देम नवरस - ७. ९-१६.९८.५४-२६
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