तेरापन्थ - आचार्य चरितावलि भाग - 1 | Terapanth - Acharya Charitavali Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Terapanth - Acharya Charitavali Bhag - 1  by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

Add Infomation AboutShrichand Rampuriya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका ` ११ (१०) महान्‌ व्यक्तित्व :-आपके व्यक्तित्व के विषय मे हम जयाचार्यके ही उद्गारो को प्रकट करेगे : मुनिवर रे शीयल धरयो नवबाड सू रे, धूर बाला ब्रह्मचार हौ लाल । ए तप उक्कृष्टो घणो रे, सुरपति प्रणमे सार हो लाल ॥ मुनिवर रे उपरम रस मांह रह्या रे विविध गुणा री खाण हो लाल । एकत्त कर्मं काटण भणी रे, सवेग रस गलताण हो लाल ॥ मुनिवर रे स्वाम गुणां रा सागर रे गिरवो श्रति गम्भीर हो लाल । उजागर गुण श्रागलो रे, मेरु तणी पर धीर हौ लाल॥ मुनिवर रे कठिन वचन कहिवा तणो रे, जाण के लीधो नेम हो लाल । बहुलपणे नहीं बागस्यों रे, वचनाम्ृत सू प्रेम हो. लाल ॥ मुनिवर रे विविध कठिन बच सांभली रे, ज्यारे मन मे नही तमाय हो लाल । तन मन वच मुनि बद्च कियो रे, ए तप श्रघिक श्रथाय हो लाल ॥ मुनिवर रे चौथे श्रारे सांभल्या रे, क्षमा शूरा भ्ररिहत हो लाल । विरला पचम काल मेँ रे, हेम सरिषा सन्त हो लाल ॥ मुनिवर रे निरलोभी मुनि निर्मला रे, भ्रार्जव निर श्रहकार हो लाल । हलका क्म उपधि करी रे, सत्य वच महा सुखकार हो लाल ॥ मुनिवर रे सयम मेँ शूरा घणा रे, वर तप विविघ प्रकार हो लाल । उपधि श्रनादिक मुनि भणी रे, दिलरो हैम दातार हो लाल ॥ मुनिवर रे र्या धून भ्रति भ्रोपती रे, जाणे चाल्यो गजराज हो लाल । गुण मूरत गमती घणी रे, प्रत्यक्ष भवदघि पाज हो लाल ॥ मुनिवर रे स्वाम गुणा रा सागरू, किम कहिये मुख एक हो लाल । उडी तुक्च श्रालोचना रे, बारू तुझ. विवेक हो. लाल ॥ मुनिवर रे झ्खड श्राचार्य श्रागन्यां रे, तें पाली एकणधार हो लाल । मान मेट मन वश कियो रे, नित्य कीजे नमस्कार हो लाल ॥ साझ घणा सन्वा भणीरे, ते दीघो ्रधिक उदार हो लाल । गण वच्छल गण बालहों रे, समरे तीरथ च्यार हो लाल ॥ (११) भाचार्यों के चहुमान के पात्र :--आपने तीन आचार्यों के--आचार्य भीखनजी, भआाचार्य भारीमालजी और आचार्य रायचन्दजी के युग देखें। आपको सभी का स्नेह एवं वहुमान प्रष्ठा] आपके दीक्षा लेने के भाव स्थिर होते ही स्वामीजी ने युवाचायं भारीणलजी से फरमाया : {देम नवरस - ७. ९-१६.९८.५४-२६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now