बिखरे मोती | Bikhre Moti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.43 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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No Information available about सुभद्रा कुमारी चौहान - Subhadra Kumari Chauhan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की हि विनीत निवेदन | ये बिखरे मोती झाज पाठकों के सामने उपस्थित करती हूँ ये सब एक ही सीप से नहीं निकले हैं । रूढ़ियों और सामाजिक बन्धनों की शिलाओं पर अनेक निर- पराघ आत्माएँ प्रतिदिन ही चूर चूर हो रही हैं । उनके हृद्य- बिन्दु जहाँ-तहाँ मोतियों के समान विखरे पड़े हैं। मैंने तो उन्हें केवल बटोरने का हो प्रयन्न किया है । मेरे इस प्रयत्न में कला का लोभ है और अन्याय के प्रति क्षोम भी । सभी सानवों के हृदय एक से हैं । वे पीड़ा से दुःखित अत्याचार से रुप्र और करुणा से द्रवित होते हैं। दुःख रोप और करुणा किसके छ्ृद्य में नहीं हैं ? इसीलिए ये दानियाँ मेरी न होने पर थी मेरी हैं दापकी न होने पर भी आपकी और किसी विशेष की न होने पर भी सबकी हैं । ससाज और गयृहस्थी के भीतर जो घात प्रतिघात निरंतर होते रहते हैं उनकी यह प्रतिध्वनियाँ मात्र हैं उन्हें आपने सुना होगा। मैंने काइ नई बात नहीं लिखी है केवल उन प्रतिथ्वनियों के अपने भावुक हृदय रण
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