तबले पर दिल्ली और पूरब | Table Par Delhi Aur Purab
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
217
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्तवले पर दिल्ली और पूरब १६
परिणाम नहीं निकला । अतः ऐसे ताल-वाद्य की आवश्यकता हुई,
जिस पर कि चाँटी का काम संगति के अनुरूप सुगमतापूर्वक किया
जा सके 1 । है =
वत
स्थिरता का प्रभाव
तत्कालीन युग में भारत की राजघानी दिल्ली विलास और वैभव
का केन्द्र बनी हुई थी । समस्त वायुमण्डल रजोगुणपूर्ण बन गया था ।
आध्यात्मिक जीवन“चर्या से मनुष्य के हृदय में जिस गम्मीरता और
स्थिरता की सृप्टि होती है तथा प्रवृत्ति सत्तोगुण सम्पन्न-रहती है,
चह् जीवनं यदि राग~रं ` तथा प्रणय-कीड़ागौं मे बदले जाए, तो
वृत्ति-चांचल्य का बढना स्वाभाविक ही हौ जाता दै । मुगल शासको
के दरबारी कलावंत भौ जीवन की वास्तविकता से हटकर जिन्दगी
की रगीनियों के गुलाम वन गए \ बादशाह को भसन्न करके उसका
छृषापात्र वनने के लिए सभी ने जी-तोड परिश्रम किया। किसी ने
चादशाह् को शायर प्रसिद्ध क्रिया, तोकिसी ने गायक] किसी ने
चाददाह के नाम की छाप डालकर हजारों खयालों की स्वना कर्
डाली, जिनके ्वंसावशेष आज भी स्व० भातखण्डे-लिखिंत पुस्तकों
मे मौजूद हैँ ।
नायक-नायिकाओं के प्रचार से लोगों के हृदयों से गम्भीरता
और स्थिरता का लोप होने लगा मौर चंचलता उत्पन्न हो गई । इस
चंचलता का प्रभाव घुवपद-घमार गायन्-क्ंलो पर भी पर्याप्त रूप में
पडा, फलस्वरूप इस गायकौ मे मे गम्भीरता का वास होने लगा ।
प्रुवपद-धमार की गायकीमे से गाम्भीये निकल जाने पर उसका
वास्तविक रस समाप्त ही हो जाता है, औौर ऐसा हुआ भी !
„ म्द के नाद में गाम्मीर्यं एवं स्थिरता का प्राधान्य है ! इस वाद्य
भ यदि किसी भकार चांचस्य उत्पन्न मौ कर दिया नाए, तो निस्सन्देद
इसका वास्तविक रस नष्ट हो जाएगा । मृदंग मे चंचलता उत्सन्न
करने के लिए उसका गुह् छोटा कर दिया जाए, पुडी पर स्याही कम
रखी जाए त्या उसके चाटीवाले स्यान को पतला कर दिया जाएं ।
दरस परिवर्तेन का परिणाम यह होगा कि मृदंग दीप के स्वर में मिलने
सगेमा, किन्तु नाद-खोल छोटी ठोलक के समान रखना पड़ेगा, क्योकि
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