हिंदी कथा साहित्य में इतिहास | Hindi Katha Sahithya Main Etihas

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Hindi Katha Sahithya Main Etihas by लक्ष्मीनारायण गर्ग - Laxminarayan Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-प्रवेश [] 3 कहने का तात्पयं यह है कि इसी प्रकार की प्रतिक्रिया हिन्दी उपन्यासो के क्षेत्र में भी हुई । उपन्यास के क्षेत्र मे भी यथाथेवाद, मनोविज्ञान, राप्टरीय चेतना आदि को आधार वनाकर शोधकायं किया गया किन्तु यहाँ हमे कहना यही है कि अपेक्षा उपन्यास भौर कृत अन्य विधाओ के, उपन्यास विधा पर ओर उपन्यास विधा में शोध कायं नी रेतिहासिक उपन्थास परतो शोध कायं बहुत ही अत्पमात्रामें हुआ है । कारण इसका यही है कि हिन्दी मे अब तक एतिहासिक उपन्यासो का अभाव-सा र्हा है । (हालाँकि यह बात अव नही है अब “ऐतिहासिक उपन्यासः उपलब्ध होने लगे हैँ ।) यहां वस्तुतः हमारा विषय ऐतिहासिक उपन्यासों से साम्य रखते हुए भी उससे कुछ भिन्न है, किस प्रकार भिन्न है यह हम आगे स्पष्ट करने की चेप्टा करेंगे--यहाँ सिर्फ कहना यही है कि आज उपन्यास ने अपने अभाव की पूर्ति कर दी है बल्कि यदि यह कहा जाय कि आज उपन्यास नामकं वेधा, साहित्य सृजन के क्षेत्र में हो रही. प्रतिस्पर्धा में अन्य सब विधाओ से अग्रिम है तो अत्युक्ति न होगी । किन्तु जव हम उपन्यास साहित्य के आलोचना क्षेत्र पर (जिसमे ऐतिहासिक उपन्यास भी सम्मिलित है) दृष्टिपात करते है तो ज्ञात होता हैं कि उपन्यास साहित्य पर विशेष रूप से इतिहास मण्डित उपन्यासो पर तो बिल्कुल नगण्य कार्य हुआ है । मेरे विचार में उपन्यास असन्तुलित रुप से विकसित हुआ हैं । “असन्वुलित' से मेरा अभिप्राय यही है कि जहाँ प्रारम्भ मे उपन्यास रचना मन्थरगति से हो रही थी वहाँ विगत कुछ दशकों में उपन्यास ने साहित्य की अन्य सभौ विधा को पीछे छोड़ दिया है और स्वयं साहित्य की सर्वोत्तम सर्वाधिक लोकप्रिय, सर्वाधिक सशक्त एव सर्वागीण विधा बन गया है । किन्तु खेद इस बात का है कि आज भी आलोचकों का दृष्टिकोण उपन्यास के प्रति कुछ उदासीन ही रहा है । यों इसके मूल में कारण कई हो सकते है किन्तु प्रधान कारण यह है कि प्राचीन काल में उपन्यास ,तथा उपन्यासकार के प्रति जो तिरस्कार की भावना लोगों मे थी, हमारे आलोचको के हृदय में आज भी कही न कही अज्ञात रूप से घर किये है। कुछ तो भिर्या वावले, कुछ खाई भाग वाली गति उपन्यास की हुई है। कुछ तो उपन्यासो, विशेषकर एेति- हासिक उपन्यासों का अभाव रहा और कुछ इन आलोचकों की उदासीनता की प्रवृत्ति के कारण आज भी ऐतिहासिक उपन्यासों पर पर्याप्त कार्य का अभाव रहा है । जोह, वतमान मे, हिन्दी में नाटक, निबन्ध, कविता, कहानी की अपेक्षा उपन्यासो की संख्या ही अधिक है ओर पटे भी सबसे अधिक उपन्यास ही जाते दै । (इस सम्बन्ध मे प्रमाण अन्यत्र दिएु जाएंगे) किन्तु शोध की दृष्टि से उपन्यास का क्षेत्र ही सबसे अधिक निधन है । इस सम्बन्ध में यदि हम अब तक किये गये शोध कार्य का सिंहावलोकन करें तो पता चलेगा कि उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में विशेष कर ऐति-




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