तबले पर दिल्ली और पूरब | Table Par Delhi Aur Purab

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Table Par Delhi Aur Purab by लक्ष्मीनारायण गर्ग - Laxminarayan Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त्तवले पर दिल्ली और पूरब १६ परिणाम नहीं निकला । अतः ऐसे ताल-वाद्य की आवश्यकता हुई, जिस पर कि चाँटी का काम संगति के अनुरूप सुगमतापूर्वक किया जा सके 1 । है = वत स्थिरता का प्रभाव तत्कालीन युग में भारत की राजघानी दिल्‍ली विलास और वैभव का केन्द्र बनी हुई थी । समस्त वायुमण्डल रजोगुणपूर्ण बन गया था । आध्यात्मिक जीवन“चर्या से मनुष्य के हृदय में जिस गम्मीरता और स्थिरता की सृप्टि होती है तथा प्रवृत्ति सत्तोगुण सम्पन्न-रहती है, चह्‌ जीवनं यदि राग~रं ` तथा प्रणय-कीड़ागौं मे बदले जाए, तो वृत्ति-चांचल्य का बढना स्वाभाविक ही हौ जाता दै । मुगल शासको के दरबारी कलावंत भौ जीवन की वास्तविकता से हटकर जिन्दगी की रगीनियों के गुलाम वन गए \ बादशाह को भसन्न करके उसका छृषापात्र वनने के लिए सभी ने जी-तोड परिश्रम किया। किसी ने चादशाह्‌ को शायर प्रसिद्ध क्रिया, तोकिसी ने गायक] किसी ने चाददाह के नाम की छाप डालकर हजारों खयालों की स्वना कर्‌ डाली, जिनके ्वंसावशेष आज भी स्व० भातखण्डे-लिखिंत पुस्तकों मे मौजूद हैँ । नायक-नायिकाओं के प्रचार से लोगों के हृदयों से गम्भीरता और स्थिरता का लोप होने लगा मौर चंचलता उत्पन्न हो गई । इस चंचलता का प्रभाव घुवपद-घमार गायन्‌-क्ंलो पर भी पर्याप्त रूप में पडा, फलस्वरूप इस गायकौ मे मे गम्भीरता का वास होने लगा । प्रुवपद-धमार की गायकीमे से गाम्भीये निकल जाने पर उसका वास्तविक रस समाप्त ही हो जाता है, औौर ऐसा हुआ भी ! „ म्द के नाद में गाम्मीर्यं एवं स्थिरता का प्राधान्य है ! इस वाद्य भ यदि किसी भकार चांचस्य उत्पन्न मौ कर दिया नाए, तो निस्सन्देद इसका वास्तविक रस नष्ट हो जाएगा । मृदंग मे चंचलता उत्सन्न करने के लिए उसका गुह्‌ छोटा कर दिया जाए, पुडी पर स्याही कम रखी जाए त्या उसके चाटीवाले स्यान को पतला कर दिया जाएं । दरस परिवर्तेन का परिणाम यह होगा कि मृदंग दीप के स्वर में मिलने सगेमा, किन्तु नाद-खोल छोटी ठोलक के समान रखना पड़ेगा, क्योकि




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