जैन मित्र | Jain Mitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
482
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८१७ जेनमित्र.
` २. समस्त पाठशाखावोका कों ९क प्र | श्रावकाचारादिक ग्रथ सान्वयाथै पडायै
अहक (170९५५० ) नही है. जति हैं. जिससे कि विद्यार्थी तथा अध्या-
ब॒ ६. समस्त पाठशाछावोंकी देखरेख करने- पक इन दोनोंको ही बहुत कुछ कठिनता
सेकेखिये कोई एक इन्संपेक्टर नहीं हैं. पड़ती है. इसकारण अबके महासमाके
रि ४. भारतवर्षभरमें कोई भी ऐसी पाठशाला | अधिवेदानपर समस्त पाठ्यालाओंके अ-
सनही हे कि निसमें जैनधघर्मसंबंधी उच्श्रणीकी | ध्यापक तथा-प्रबंधकर्त्ता ओंसे मेठेपर
ध विद्या पढाई जाती हो. पधारकर सवसहमत तथा अनुकूल क्रम
३. १. विद्यार्थागण स्वलपविद्याम्या्त करके ही | निर्णय करनेकी प्रेरणा की जाती हैं आशा
ह आगामी विद्याम्यासको छोडकर अपने २ | है कि समस्त महाशय इस आवशइ्यकीय
र रोजगारधंदेमें लग जाते हैं कार्य्यकी प्रेरणासे गाफिल महिं रहेंगे.
है, योग्य अध्यापकॉंकी हमेशाह अप्राति है. पाठकमहाशय ! इस विषयमें हम मी
इन छदद कारणोंसि पाठ्शालावोंका फल | अपनी टूटी फूटी सम्मति छिख़ते हैं
¦ इष्टिगोचर नं होता. यदि इन ( उन्नति- | आशा है किः आप निष्पक्षष्टिसे विचार
¡ के ) मतिर्वेधक कारणाको दूर करनेका । करेंगे.
¦ उपाय क्रिया जाय तो आदा ६ कि। हमारी रायमें पाठ्शालावोंके तीन भ-
| शी ही हमारे अभीष्ट फर्की सिद्धि हो ! द होने चाहिये-अर्थात् एक तो वार्बो-
|
= ३ [1
| क क क
सक्ती है. | घ पाठशाला दूसरी प्रवोशिका पाठशाला,
` अब इन कारणॉपर किंचित विचार आर तीसरा विद्यालय.
किया जाता है. | प्रथमकी बालबोधपाठशालामें _ वर्ण
१. प्रथम तो समस्त पाठशालावोंमें प- | मालासे लेकर विद्यार्थियोको इतना विप-
ढाईका क्रम एकसा नहीं हैं. सो ठीक नहीं है ¦ य अभ्यास करादिया जाय करि जिससे
क्योंकि जबतक ससरत पाठशाछावोंमें प्रवेदिका खंडकं रत्नकरंडश्रावकाचारादि
पढाईका क्रम एकसा नहिं होगा तबतक ! ग्रेथीको पढानेमें अध्यापक तथा विर्धाथि-
परीक्षा आदिकके प्रबंधमं बहुत कुछ ! योंकी किसीप्रकार मी कठिनता नहिं पड़े.
गड़बड़ पड़ती है. इसकारण सहझक्रमकी | और जबतक विद्यार्थी बालवोध परीक्षाके
अत्यंत आवश्यकता है. इस विषयमें अनक ¦ समस्त विषयोंमें उतीर्ण न हो जाय
पाठशालावोंकि अध्यापक तथा प्रबंधकत्ता- | तब तक उस विय्यार्थीको प्रवेशिका पाठ*
आओंका सबसे बडा उजर यह है कि प्रथम | शाठाकी पढाईमें सामिठ न किया जाय.
ही प्रथम पढनेवाले बालकॉोको व्याकरणका | इस पाठदयालाकी परीक्षा लिखित प्रश्नों -
बोध तो है नहीं और उनको रत्नकरंड | द्वारा नहिं होनी चाहिये किन्तु परीक्षाठ-
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