आधुनिक हिन्दी साहित्य 1900 से 1950 की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि | Aadhunik Hindi Sahitya 1900 Se 1950 Ki Sanskritik Prishthabhumi

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Aadhunik Hindi Sahitya 1900 Se 1950 Ki Sanskritik Prishthabhumi by भोलानाथ - Bholanath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४६ 1] सेनाओं को पीछे हटना पडा । पराजय-सी दिखाई पड़ी । उसो समय ससार ने एक अचम्भे मी बात देखी । जोतने वाला अपने आप पीछे हट गया । कुछ बप पहले स्वेज महर के प्रस्न पर होने घाले सश्चक्त सघप में विजेता-सा इ गलेड पोछे हटा और मित्र को ल्ष्य प्राप्ति हुई । उसी घटना की नये रूप मे पुनरावृत्ति हुई । आज विव राजनीति के रगमच पर जीते हए-से चीन वी दुगति हों रही है और पराजितन्से भारत की प्रतिष्ठा मे वहीं किसी जोर से कमी नहीं दिखाई पड़ती ! नई बात है 1 पराधीन भारत के रामउप्ण विवकानद, रामतीथ-दयानद, तिलक गाधी गोखले रानाडे, भरविद रमन, ट गौर भारती, प्रं मचन्द प्रसाद, मालवीय नेहरू, जवाहर, लाल विनावा, राघाषष्टन भादि कौ उपेक्षा ससार की काई भी प्रगतिशील शक्ति नही कर सक्ती । उनीमवी राताव्दी के उत्तराद्ध नै जस-पास वे समय म भारतवप में इतनी प्रतिभाओं वा जम हुआ कि रामय पर भारत उनवकं प्रकाश मे जगमगा उठा । अमावस्या को दीपावल्याः कै मधुर प्रकाश ने जसे सजा दिया हो ! गुलाम भारत म भी कितनी भसाधारण क्षमता थौ 1) श्रदन यह है कि दब पिसे-लुटे-पस्त भारत में इतनी शक्ति और धषमता वहा से आ गई थी कि वहं ससारके लिण शव्चर्यो की सृष्टि कर सका! उके अदर यह शक्ति रहा छिपी थी !! भारत की शक्ति और सम्भावना लागो के लिए अनद्ूभ पहेली बनी हैं ! बीसवी शताब्दी के पचास वप और हिंदी की समृद्धि ठीव' इसी प्रकार हिंदी भी अपरिचितो भर विरोधियों मे लिये पहेली बनी हुई है। भारतेदु बाबू हरिचद्र के समय से लेकर आज तक हिंदी ने जिस प्रकार उन्नति की है वह सचमुच आश्चय वा विपय है। उस समय कविता ब्रजभाषा में सिसी जाती थी गौर आज खड़ी बाली म लिखी जाती है। उस समय के गद्य में भी ब्रजभाषा मे दाब्द आ जाते थे जौर आज पथ म भी वे कही नहीं दिखलाई पढ़ते । बीसवी ताब्दी के आसपास वी खड़ी वांसो की कविता नौर आज की कविता दा चलनात्मकं अध्ययन कर तौ भाषा, चलो, विषय, काव्यात्मक्ता, नभिव्यजना शक्ति आदि की हृष्टियो से दानो मे. जातचयजनक अतर मिलता हैं। यही स्थिति गद्य के क्षेप्र म भी है। भाषा वो अभिव्यजना गक्ति दोली की विविधता, विपय की अनेकता, विद्याआ की विभिर्नता, अभिव्यक्तिया वी प्रौढता सुदम विचारों को सून रूप में उप स्थित करने की दाक्ति, जादि की हृष्टियो से आज के गद्य मे और भारतेदु युग के गद मे बहुत अततर भा गया है। उस समय साहित्य उतना प्रचुर नहीं या जितन आज है। स्थिति म भी बडा अन्तर है। उस समय वी हिन्ी पु कूप से उपेक्ष




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