अनित्य तथा अनात्मवादी अवधारणा का समीक्षात्मक स्वरूप | Anitya Tatha Anatmavadi Awadharana Ka Samikshatmak Swaroop

88/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Anitya Tatha Anatmavadi Awadharana Ka Samikshatmak Swaroop by बंशीधर शास्त्री - Banshidhar Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बंशीधर शास्त्री - Banshidhar Shastri

Add Infomation AboutBanshidhar Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ही समस्त जंगम की निर्माणकर्त्री है। अन्ततः सभी तत्व इसी अग्नि मे विलीन हो जाते है“ इस प्रकार की स्तुति से यदि यह संकेत लिया जाये कि अग्नि ही अन्य तत्वों की अपेक्षा सत्‌ है ओर सभी तत्व अग्नि म विलीन होते है, तो संगत ही कहा जा सकता है। इसी प्रकार जब ऋग्वेद का ऋषि वात देवता की प्रार्थना करता है तो कहता है कि यह सभी देवताओं कौ आत्मा है और भुवनों की प्रसूति है। यह देवता स्वच्छन्द रूप से जहां चाहे वहां विचरण कर सकता है। उसकी ध्वनी सुनाई देती है, आकार नहीं दृष्टिगोचर होता है“ और इस मंत्र में वात देवता की ही सर्वातिशयता सिद्ध कर अन्य देवताओं की अपेक्षा वात का स्वरूप ही सर्वव्यापी कहा गया है। सम्भवतः यही कारण था कि मैक्डाल यह मानने के लिये विवश हुए कि वैदिक सुक्तकारो के मत में देवता अनादि ओर अजन्मा नही है, कारण यह है कि वे पृथ्वी के अपत्य कहे जाते है और कुछ देवता दुसरे देवताओं से उत्पन्न साने जाते है ! वैदिक ऋषिओं के मन मे भी यह विचार आता है कि क्या देवतं का वास्तविक रूप वही है, जो हम जानते हैं। वेद में अति प्रतिष्ठित और शक्तिशाली देवता इन्द्र की स्तुति में ही यह कहा जाने लगा कि क्या इन्द्र है? हमारी यह स्तुति इन्द्र देव को अर्पित दहै, यदि सचमुच ही कहीं कोई इन्द्र है”। इसी तरह ऋग्वेद में ही प्रजापति की स्तुति में बार-बार यह कहा गया कि हम किस देवता कौ स्तुति करे, किस देवता को हवि दे“ 13. स. सा. इ. भमिक्डा), पु. 5 17. ऋ. 1041214-2 14. ऋ. 81003 15. वही, 1041211-2 16. वही, पु. 57 एवं कृ.म.तै.सं. 24145432, 2.14544




User Reviews

  • Hemendrakumar Rai

    at 2021-09-21 04:43:06
    Rated : 8 out of 10 stars.
    इसे बौद्ध दर्शन की श्रेणी में रखा जा सकता है।
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now