विश्वभारती पत्रिका | Vishvabharati Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नैवेद्य कर्म-अन्ते सन्ध्यावेलाय बसिब तोमार सने। सन्ध्यावेलाय भावि बसे घरे तोमार निशीथविरामसागरे श्रान्त प्राणेर भावना वेदना नीरवे याइबे नामि, ओगो अन्तरयामी। हिन्दी छाया (९) हे जीवनस्वामी, प्रतिदिन मँ तुम्हारे सम्मुख खड़ा रहूँंगा। हे भुवनेश्वर, हाथ जोड़ कर मैं तुम्हारे हो सम्मुख खड़ा रहूँगा। तुम्हारे अपार आकाश के नीचे, निर्जन एकान्त मे, नम्र हदय से, नयनां मेँ अश्रुनल सहित तुम्हारे ही सम्मुख खड़ा रहूँगा। तुम्हारे इस विचित्र भव-संसार मे, कर्म-पारावार के तट पर, निखिल जगत्‌जन के बीच तुम्हारे ही सम्मुख खडा रहूगा । तुम्हारे इस संसार मे जब मेरे समस्त कार्य समाप्त हो जायेंगे, तब हे राजराजेश्वर, एकाको नीरव हो कर तुम्हारे ही सम्मुख खड़ा रहूँगा। (२) मेरे इस घर में अपने हाथों से तुम गृहदीप जलाओ। .




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