भारतवर्ष और उसका स्वातंत्र्य - संग्राम | Bharatvarsh Or Uska Savatantrya-sangram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र्वीन भारत की सभ्यता द होकर जगद्‌ गुरु बनने का सौमाव्य प्राच किये हुए था, तो हमे यह तत्काल जान लेना चाहिये कि उस समय में उस देश की शासन पद्धति भी अत्यन्त श्रेष्ठ, उदार और दिव्य रही होगी; क्योंकि जब तक किसी देश में शान्ति न दो, लोगों के अन्तः करण निव्याकुल्ल न हो तथा योग्य मनुष्यों को अपनी बुद्धि और प्रतिमा विकसित करने के झनकूल साधन न मिं, तब तक ऊँचे २ विचारों का, तत्वों का तथा आविष्कारों का जन्म नहीं हो सकता । सम्भव है कि किंसी समय इस देश में अत्याचार पुर शासन रहा हो, पर जिस वक्त इस देश से संसार को “प्रकाशित करने वाली दिव्य ज्ञानज्योति का श्राविष्कार हुआ हो उस समय तो देश की शासन पद्धति अवश्य ही उत्कृष्ट ओर दिल्य रही होगी । हम श्रपने इसी तत्व को भारतवर्ष पर लगाना चाहते है । यहं बात तो भ्रःयः पाश्चात्य विद्वान्‌ भी स्वीकार करते हैं प्राचीन काल में एक समय भारतवषं की सम्यता संसार की सिरमौर थौ । भारत ने श्रषनी दिव्य ज्ञानज्योति से अंधकार में गिरे हुए संसार के कई देशों को प्रकाश बतलाया था । यहां तच्वज्ञान के उन उँचे सिद्धान्तों का जन्म हुआ था जिन पर श्राज घमय्डी पाश्वात्य संसार मी ख, है लोर वह सुक्त कंट से यह स्वीकार कर रहा है कि जहाँ उसके तत्व ज्ञान का अन्त होता है, वहं भारतीय कत्व ज्ञान का आरम्भ होता हे । जब हमारे असिमानी युरोपियन बन्धु दृतौ के पत्ता से रपे ग्एरीर को ढकते थे और असम्य मनुष्यो की तरह इधर उधर घुमते फिरते थे, तब हमारे भारतवर्ष में ऐसे ऐसे सिद्धान्तों का--ऐसे ऐसे झाधिष्कारों का--विकास हो रहा था डिण्डे ` लये हमे ष्टी नटीं पर सारी मनुष्य जाति को अभिमान होना चाहिये । हमारे उक्त कथन की पुष्टि कई सुत्रख्यात पाश्चात्य अन्यकारों के लेखों * से द्ोती है । उन्होंने दिखलाया है कि प्राचीन काल में भारतवर्ष ने संसार में ज्ञान की ज्योति फ़ेलायी थी और पाव्यात्य देशों के तया चीय ` ` भमृति अन्य देशो ॐ महान्‌ पुरुषों ने यहाँ आकर जान आस ... ` त




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