दवा | Davaa

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Davaa by डॉ एन. ई.विश्वनाथ अय्यर - Dr. N. E. Vishvnath Ayyarडॉ पुनत्तिल कुंजब्दुल्ला - Dr. Punttil kunjbdulla

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डॉ एन. ई.विश्वनाथ अय्यर - Dr. N. E. Vishvnath Ayyar

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डॉ पुनत्तिल कुंजब्दुल्ला - Dr. Punttil kunjbdulla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ समय तक मंडराती रही और फिर आकाश की तरफ उड़ चली। वह अजनबी अगली रात एक बूढ़े के कमरे में पहुंचा जो वर्षों से आठों पहर खाट पर पड़ा रहता था। न वह नींद का आनंद ले सकता था न जागने का । भूंकते कुत्तों की परवाह किये बिना पत्थरों और कांटों भरे रास्ते से होता हुआ ही वह अजनबी बहां पहुंचा था । उस समय घर में उसकी बुढ़िया औरत के सिवा तीसरा कोई नहीं था । अजनबी ने अपना सवाल दुहराया बीज कहां हैं? इस बार उसने शब्दों का क्रम जरा-सा बदला था। नींद और झपकी के बीच कानों में पड़े सवाल के जवाब में बूढ़े के होंठ बुदबुदाये मुझे नहीं पता वृद्ध दूर देश से बीजों की खोज में आये उस अजनबी को देख नहीं सका । वह आंखों से ओझल हो गया। बूढ़े को दस्त और के होने लगी । दूर के रिश्तेदार हिलने-डुलने में असमर्थ बिस्तर पर पड़े बूढ़े को मन-ही-मन कोसते हुए दो दिन तक उसकी सेवा-टहल करते रहे । वे दरी व फर्श धोते रहे । पाखाना और कै निकालकर घर से बाहर फेंकते रहे । तीसरे दिन बूढ़े ने अपने ही मल-मूत्र और कै में पड़े-पड़े अंतिम सांस ली । तब तक वृद्ध की पत्नी भी निष्प्राण होकर गिर पड़ी। लोगों ने उन मृतकों की ठंडी पड़ी लाशों को गड्टे में दफना दिया । तीसरे दिन आधी रात को अजनबी मरे बूढ़े के पोते के पास पहुंचा । उसने नन्हें बच्चे को रंगीन गुब्बारे और लाल फूल दिखाकर चिढ़ाया । बच्चा आधी रात को गला फाड़कर चीख उठा । चिल्लाहट रोग में बदली । सिर्फ दो साल का बदनसीब नन्हा ओझा और वैद्य बारी-बारी से कोशिश करते रहे। फिर भी तीसरे दिन बालक का जीवन-दीप बुझ गया । वह घर दुखी परिवार के करुण क्रंदन में डूब गया । सबने मिलकर उस नन्हें की लाश को मिट्टी में दफना दिया । इसके बाद अजनबी अदृश्य हो गया । इसी बीच उसने गांव भर में बीज छिड़क दिये । मृत्यु का प्रकोप हैजा बनकर नंगा नाच कर उठा। हैजा अड़ोस-पड़ोस के दो घरों में दबे पांव घुस गया । पहले घर में नवविवाहित युवा पति-पत्नी थे । रोग आमंत्रित अतिथि-सा वहां पहुंचा । पिछली रात दोनों ने जी भर गन्ने का रस पिया अंडे और दूध से बना हलवा खाया था। पति अपनी अवस्था से भी अधिक विवेकी था । उसने पत्नी को खाते समय ही सावधान किया था कि दस्त का खतरा है। मगर मधुमास की मिठास में चेतावनी की चिंता न करके दुल्हन ने डटकर हलवा खाया । इसे विडंबना ही कहिए दूसरे दिन सुबह-सुबह दूल्हे को ही दस्त शुरू हुए । दोपहर तक वह थकान के मारे निढाल हो गया । बाहर कदम रखने में असमर्थ पैरों ने जवाब ०




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