श्रीपाल | ShriPal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रोपाल श्र रोग स्पशे से बचाने के लिए अच्छी तरह. वख्ाच्छादित करके घोडे पर बैठ गई । कुष्टियो ने रानी को लेकर प्रस्थान किया, पर श्रमी अधिक दूर नहीं निकल पाये थे कि एक ओर से बडी धूल उडती दीखे पडी श्रौर कुछ ही काल मे अश्वारोही सैनिको के एक मुंड ने उन्हे चहँ श्रोर से घेर लिया । उनमे सेण्क ने श्रागे बढ कर उन्हे ठहरने की आज्ञा दी । कुष्टियो के ठहरने पर उस श्ग्रणी ने कहा--“क्या तुमने इस मार्ग पर किसी स्त्री को एक बालक लिये जाते देखा है, यदि देखा है तो कहो वह किस ओर गई है » । कुष्रियो ने कहा “नहीं महाराज हमने किसी ख्त्री आदि को नहीं देखा है ”। श्रप्रणी--“मालूम होता है तुम सत्य नहीं बताते वह स्त्री अवश्य इसी माध से ग है। सम्भव है कि तुमने उसे छिपाया भी हो ओर इसी कारण शायद न वताते हो । यदि सत्य न कटोगे तो हम तुम्हारी तलाशी लेकर उसे निकालेगे ” । कुष्टि--अरे महददाराज हम तो कुष्टी है हमे किसी खीसेवा उसके कारण सत्यासत्य भाषण से क्या लाम ? यदि श्राप नही मानते है तो सहषं हम लोगो मे खी को खोजिये पर यदि श्राप को भी हमारी वायुस्पशं से यह्‌ रोग लग जाय तो फिर हमे दोष न दीजियेगा । श्रौर यह भी स्मरण रखियेगा कि फिर श्रापको भी हमारे समान मारा मारा फिरना पड़ेगा” । उस श्रश्वारोही ने विचारा नौकरी करते है तो क्या इसलिये थोडी कि अकारण ही अपने प्राण देते फिरे । इगनी खोज पछाड़




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