हिन्दी - गद्य | Hindi - Gadh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ५, इसका प्रमाण यह दैक चंद श्रौर नरपति नल्द की कविताओं में भी खड़ी बोली के रूप मिलते हैं। पद्य के रूप मं खड़ी बोलो क्रा प्रयोग खुसरा श्रौर बाद में कबीर की कविराओं में मिलता है परंत॒ गद्य में ध्वड़ी बोली का प्रयोग बहुत बाद मं हुआ । उदू के विद्वानों की खानों से पता चला हैं कि दनिंग मं खड बोली गद्य का प्रयोग सूफ़ी श्रोलि- यात्रा (सन्तो) द्वारा १ ३वीं-१४वीं शताब्दी मं हा श्वारंभ हो गया था । हिन्दा खड़ी बाली गद्य का केवल एक नमूना दस्परे सामने है । इसे टी हम खड़ी बोली गद्य का सवप्रथम उदाहरण कह सकते हैं । यह श्रकवर के दरबार के कवि गंग माट्‌ का ^“चन्द्‌ हन्द वरग्गन की कथा” है 1 इस प्रकार दम देखत हैं कि १७वीं शताब्दी के पूचाद्ध तक गद्य-रचनाएं, विगेपतः व्रजभमाघामं थीं । विदलनाथ का द्धाररस मंडन, गोकरुल- नाथ के किमी शिष्य की ८४ वार्ता श्रौर २५२ वाता, नन्ददास की विज्ञानाय प्रवेशिका, नासिकत पुराण भाषा और श्रप्याम (१६००) गोस्वामी तुलसीदास का पंचनामा (६१२), श्रारह्ा-निवासी बैकुरट- दास (श्रा १६१८१६२४) की रचनाएं बैकुर्ठ माहात्म्य ज्रौर अग्रहण माह्यत्म्य शरोर गुवनदीपिका (१६१५) एवं विष्णुपुरी (१६१३) केवले इतनी ही त्रजभापा कौ गद्य-सम्पत्ति श्राज दमारे पांस सुरक्षित बची है। १६४३ से १८४३ तक ब्रजमापा शरीर राजस्थानी में गद्य क निमाण होता रहा परंतु इस समय की ग्चनाश्रांमं मम अधिकांश लोप दो गई हैं । १७वीं शताब्दी के बाद वेप्णव-घर्म-भाधना शिथिल हं राई । उसमें विलासिता ने घर कर लिया । प्रचार के लिये प्रयल् कम दर गया] इख उत्तर मक्तिकाल में साहित्य की सष्टि न गद्य मं इतर श्रच्छी हुई, न प्य में । रीतिकाल का श्वारंभ हुआ । इस काल संस्कृत श्राचार्यो का काम कवियों ने ले लिया था जिसने गद्य के विकि क] हानि पर्टचाई । उस काले के साहित्य से यह स्पष्ट पता लगता १ कि जनता श्रौर पंडितों को साहित्य शास्त्र के ज्ञाने के प्रति श्रभिररि




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