श्री ब्रह्मगुलाल चरित | Shri Brahmgulal Charit

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Shri Brahmgulal Charit  by बनवारी लाल - Banwari Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१२) उन कवि क परति श्रपनी श्रद्धाजलि प्रकट की थी । स्वर्गीय प० श्रीघर पाठक के जोवनवरित्र लिखने का भी हमारा इरादा था । तदर्थं हम सन्‌ १६२० में उनके निवास स्थान पद्मकोट प्रयाग मे १५-१६ रोज रहै मी ये, पर वह काम ब्रव तक श्रधरा पडा है। इसके सिवाय हमने गजा लक्ष्मणमिह जी की जन्म दाताब्दी नागरी प्रचारिणी सभा श्रागरा द्वारा मनवाई थी । ल्यालगौ लोगो की रचनाग्रो का भी कुछ सग्रह हमारे द्वारा हमरा ब्रनम।हित्य मडल की स्थापना का विचार भी हमारा ही था श्रौर तदर्थ हमने भ्रान्दोलन भी किया था । यह सब बाते हम श्रात्मविज्ञापन के लिये नहीं लिख रहे, बल्कि केवल यह प्रमाणित करने के लिये लिख रहे है कि हमारा जनपद प्रेम खोखला नहीं है । श्रीधर पायवः जी की जन्म मूमि जौथरी थी, जौ हमारे यहाँ से श्राठ मील दूर है, हमने पैदल यात्रा की थी उस दिन हमें १६ मील चलना पड़ा था । इस ग्रन्थ को पढने के बाद टापा श्रौर जारखी भी हेमारे लिये तीर्थतुल्य बन गए है। यद्यपि श्री ब्रह्मगुलाल जी कौ चरण समाधि जिस जैन कालेज की भूमि मे मौजूद है, उसमे हमारा बहुन पुरान सम्बन्ध है, तथापिश्राजमे पहने हमे ब्रह्मगुलाल जी का कुछ भी पता न था । श्री बनवारीलाल जी ने हमारे लिए इस नवीन तीर्थ का निर्माण कर दिया है ग्रौर ्रबकी बार अपने घर जाने पर पहला काम हम यह करेंगे कि कुछ पुष्प लेकर उस समाधि पर चढायेंगे 1 यह बतलाने की झावव्यकता नहीं कि सम्पादक महोदय ने क्रिसी आधिक लोभ के लिए नहीं, बल्कि मातु-ऋण से उकऋण होने के लिए ही यह श्रायोजन किया है । उसके चित्त को तभी सम्तोस होगा, जब यह पुस्तक जनता द्वारा समादत हो श्रौर शीघ्र ही इसके द्वितीय सस्करण का श्रवसर उन्हे प्राप्त हो । वह 'नवभारत टाइम्स' के सम्पादकीय कार्थे से रिटायर हो चुके है, श्रौर अपना शेष जीवन इस प्रकार के साहित्यिक कार्य को श्रपित क्र देना चाहते है । छत्र- पति जी उन्हीं के एटा जिले के निवासी थे श्रौर्‌ यदि ग्रवताग का सिद्धात ठीक माना जाय तो हम कहेंगे कि छत्रपति जी की श्रात्मा उनमें ग्रवती्णं हुई है । उनकी विनघ्रता श्रौर श्रद्धा को देखकर हमे ्राश्चयं श्रौर हषं हुभ्रा । हमारे प्रत्येक जिले के लिए बनवारीलाल जी कँसे निस्वार्थ ्नौर श्रद्धालु लेखकों की




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