दर्शन और चिन्तन भाग - 1, 2 | Darshan Aur Chintan Bhag - 1, 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
935
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शंसित परिय ४२५४
हो जाता । पुस्तकोंकी देखभाल इतनी अधिक करते थे कि सालभरके उपयोगके
बाद मी वे बिलकुल नई-सीं रहती थीं 1
शुजराती सातवीं श्रणी पास करनेके बाद सुखलालकी इच्छा अंग्रेसी
पढ़नेकी हुआ, पर उनके अभिभावकोंने तो यह सोचा कि इस होशियार
लड़केको पढ़ाऔके बदले व्यापारमें लगा दिया जाय तो थोड़े ही अरसेमें दुकानका
बोझ उठानेमें यह अच्छा साझीदार बनेगा । अतः उन्हें दुकान पर बेठना पढ़ा ।
धीरे धीरे सुखलाल सफल स्यापारी बनने लगे। व्यापारमें उन दिनों बड़ी
तेझी थी । परिवारके व्यवहार भी ढगसे चल रहे थे । सगाई, शादी, मौत और
जन्मके सौकों पर पसा पानीकी तरह बहाया जाता था । अतिथि-सत्कार और
तिथि-त्यौह्मार पर कुछ भी बाकी न रखा जाता था। पंडितजी कहते हैं -- इन
सबको में देखा करता । यह सब पसंद भी बहुत आता था । पर न जाने क्यों
मनके किसी कोनेसे हत्की-सी आवाज़ उठती थी कि यह सब ठीक तो नहीं हो
रहा है । पढ़ना-लिखना छोड़कर इम प्रकारके खर्चीछे रिवाजोंमें लगे रहनेसे
कोई भला नहीं होगा । दायद यह किसी अगम्य भावीका इंगित था 1
चौदह दर्षकी आयुमें विमाताका भी अवसान हो गया । सुखलालकी सगाई
तो बचपन ही में हो गई थी । बिन सं० १९५२में पद वर्षकी अवस्थासें
वरिवाहकी तयारियां होने ठमीं, पर ससुरालकी किसी कटिनाईकें कारण उस वर्ष
विवाह स्थगित करना पढ़ा । उस समय क्िसीको यह ज्ञात नहीं था कि वह
बिवाह सदाके लिये स्थशित रहेगा 1
चेखककी दोमारी
्यापारमें हाथ बैंटानिवाले सुखलाल सारे परिवारकी आशा बन गये थे,
किन्तु मधुर लगनवाली आशा कड बार ठगिनी बनकर थोखा दे जाती है ।
पडितजीके परिवारको भी यरी अनुभव हुआ) वि सं. १९.५३ में १६ वर्पके
किशोर सुखलाल येचकके भयंकर रोगक शिकार हुए । क्षरीरके रोम रोममें
बह व्याधि परिव्याप्त हो गई । क्षण क्षणमें सृत्युका साक्षात्कार होने लगा ।
जीवन-मरणका भीषण इन्द-युद्ध छिड़ा । अंतमें सुखलाल 3िजयी हुए, पर
इसमें वे अपनी आँखोंका प्रकादा खो बेठे । अपनी विजय उन्हें पराजयसे भी
विशेष असहा हो गई, और जीवन सत्युसे भी अधिक कष्टदायी प्रतीत हुआ ।
नत्रोंके अंघकारने उनकी अंतरात्माकों निराशा एवं शून्यतामे लिमम कर दिया ।
पर दु्खकी सच्ची औषधि समय है । कुछ दिन बीतने पर सुखलाल
स्वस्थ हुए । स्वोया हुआ आखोंका बाह्य प्रकाश धीरे धीरे अंत्लॉकरें प्रवेश
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