मध्यकालीन भारतीय संस्कृति | Madhyakalin Bharatiy Sanskriti

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Madhyakalin Bharatiy Sanskriti  by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ मध्यकालीन भारतीय संस्कृति के यात्रा-विवरण से पाया जाता दहै कि उसके समय श्र्थात्‌ सातवीं शताम्दी के पूर्वाद्ध में वेदिकधर्मावलंबियों की संख्या बढ़ने और बौद्धों की घटने लंगी थी । बाणमट्ट के कथन से पाया जाता है कि थानेश्वर के वेसबंशी राजा प्रभाकर- बद्धन के ज्येष्ठ पुत्र राज्यवद्ध॑न ने श्रपने पिता का देहांत होने पर राज्यसुख को छोड़कर भदंत ( बौद्ध भिच्तुक ) होने की इच्छा प्रकट की थी श्रौर ऐसा ही विचार उसके छोटे भाई हष का भी था, जो कई कारणों से फलीमूत न हो सक्रा। हषं भी ब्रोद्ध धर्म की श्रोर बड़ी रुचि रखता था । इन बातों से निश्चित है कि सातवीं शताब्दी में राजवंशियों में भी, वेदिक धर्म के श्रनुयायी होने पर भी, बोद्ध धर्म की शोर सद्भाव श्रवश्य था । वि० सं० ८४७ (ई० स* ७६० ) के शेरगढ़ (कोटा राज्य ) के शिलालेख से पाया जाता है कि नागवंशी देवदत्त ने कोशवद्धन पव॑त के पूर्व में एक बौद्ध मंदिर श्र मठ बनवाया था, जिससे अनुमान होता है कि वह बौद्ध धर्मावलंबी था । ई० सन्‌ की बारहवीं शताब्दी के श्रंत तक मगध श्र बंगाल को छोड़कर भारतवष के प्रायः सभी विभागों में बोद्ध धर्म नष्प्राय हो चुका था श्रौर वैदिक धर्म ने उसका स्थान ले लिया था । जैन धमं जैन धमे की उत्पत्ति श्चौर उस समय का हिंदू घ्म--जैन धर्म मी बोद्ध धमं से कुह पूव॑ भारतवर्ष में प्रादुभत हुआ । महावीर का निर्वाश गोतम बुद्ध से पूव हो चुका था । उस समय के वेदिक धर्म के मुख्य सिद्धांत ये थे। १--वेद ईश्वरीय शान है । २- वेदिक देवताग्रो--इन्द्र वकण ्रादि-की पूजा । ३-यशों में पशुहिंसा । ४--वणुव्यवस्था । ५--श्राश्रमव्यवस्था ६--श्रात्मा श्रोर परमात्मा का सिद्धांत । ७--कमंफल श्रौर पुनजन्म का सिद्धांत ।




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