भाषाशास्त्र तथा हिन्दी भाषा की रूपरेखा | Bhasha Shastr Tatha Hindi Bhasha Ki Ruparekha

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Bhasha Shastr Tatha Hindi Bhasha Ki Ruparekha  by देवेन्द्रकुमार शास्त्री - Devendra Kumar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाधाधाख्र : परिचय ७ से हम जिस भाषा कां प्रयोग करते आ रहे हैं यदि' उसके सम्बन्ध में कोई सामान्य-खा प्रश्न पूष देता है कि--'तुम आगरा से आ रहे दो यह वाक्य ठीक टै अर्थवा तुम आमरे से आ रहे हो' इन दोनों में से शुद्ध क्या है तो उत्तर देना कठिन हो जाता है । इसी प्रकार से जिन व्वनियों से हम सवा परिचित हैं और जिनका रात-दिन प्रयोग कस्ते ह उनके सम्बन्ध में कोड पूछ बैठे कि दश ओर “दस में से क्या लिखना चाहिए. तो हम असमंजस में पड़ जाते हैं । ध्वनियो ओर शब्द-रूपों की मेति माषा की अभिव्यक्ति पद्धति की जानकारी के लिए. भी भाषाशास्त्र का अध्ययन करना नितान्त आवद्यक है। मानव का सम्पूर्ण जीवन उसकी वाग्ध्वनियों में लिपटा रहता है और उनका अध्ययन करना ही भाषाशास्त्र का मुख्य कार्य है। संक्षेप मे, भाषा-दास्त्र की उपयोगिता निम्न- लिखित है :-- (१) भाषा के आन्तरिक तथा बाह्य सूपकी वास्तविक जानकारी के लिए इसकी उपयोगिता स्पष्ट स्प से परिलक्षित होती है । भाषा के सम्बन्ध में सभी प्रकार की जिशासाओ का समाधान भाषाशाख्र से होंता है । (२) किसी भी भाषा के सम्यक्‌ शिक्षण के लिए भाषाशार एक निर्देशक के समान है, जिसकी सहायता से हम किसी भी प्रकार की भाषा की शिक्षा ठीक उच्चारों के साथ सम्यक्‌ रूप में प्राप्त कर सकते है ! (३) जीवित बोली तथा भाषा एवं लिखित अथवा साहित्यिक भाषा के बीच कां अन्तर माषाशास्त्र के अध्ययन से विदित होता है । साधारण और दिष्ट छोगों के बीच जो अन्तर दिखलाई पडता है वही भाषा के क्षेत्र में भी लक्षित होता है । (४) हस्तलिखित ग्रन्थ के पाठ-संदोधन में तथा अथ-निर्णय में माघा-विज्ञान और भाषाशास्त्र दोनो ही उपयोगी है । भाषाशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर जो पाठ-शोध किया जाता है बह सम्यक्‌ तथा वैज्ञानिक माना जाता है । (५) ऐतिहासिक भाषाशास्त्र मे भाषा के विकास के साथ ही ऐतिहासिक खोजो का विवरण भी मिलता है, जिससे पुराकालिक समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध में कई ज्ञातम्य तथ्यो की जानकारी भिशूती है । मानव के विकास की कथा के स्पष्ट सूत्र भाषा मे निहित रहते है । इसलिए कई शताब्दियों के बाद भी वे उस युग के परिचायक होते हैं । सामान्यतः लोग भाषाशास्त्र को व्याकरण की भॉति दुरूद तथा नीरस समझते हैं । बहुत कुछ अंशो मे यष बात सच भी है । किन्तु जञानार्जन मे दुरूहता सौर जटिलता का पदन नही शेता । मले दी यह सामान्य रचि का विष्य न शे, किन्तु भाषा की ठीक- ठीक जानकारी के किए. यह रुचिकर विषय अवश्य है। भाषा के सम्बन्ध म मारी अशानता भर भ्रम का परिहार इस शास्त्र के अध्ययन से भलीमोति हो जाता है । व्याकरण की अपेक्षा इस शास्त्र का विषय अधिक रोचक तथा बिवरणारमक टै । इस लिप. यह उतना कठिन नही है । एक साहित्य के विद्यार्थी के किए; किसी काव्य की सम्यकू व्याख्या और आकोचना एवं साहित्यशास्त्र समझने में जितना बौद्धिक श्रम




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