ज्ञानानन्द श्रावकाचार | Gyananand Shravkachar

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Gyananand Shravkachar by देवेन्द्रकुमार शास्त्री - Devendra Kumar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: 7: टौदरसकजो व: सं: 14 ९1 में सुख्तान बालों की रहायपूर्ण ।चदुडों छिखे चुके. - ओ उसमें: कहीं भी किसी रूप में ग्र. रायमल्ल के नास का उल्लेख नहीं है. - . यह शी एक अद्भुत साद्य दै कि दोसों विद्वानों. का ांहिलिएक ले पधि ' .. এই प्रारम्भ होता है । यह भी सम्शाधतो है कि पत्चिंतप्रवर:के इस इित्व ओर... व्यक्तित्व से प्रंभानित होकर अ, रागमल्लओं' से . उससे रन्ध रचना के लिए . ` अंगुशीक् किमा हो + अतः सभी प्रकार से: विचार करने पर यही-मंतः स्थिर होता है कि ब्र. रायमंहल का जन्म वि. से. 1780 में हुआ चा | ~ | ' ₹चनमाएँ । # ` अभी तक्र. ध. रायम्ल- की सतीन रचनाएं सिलमे हैं। रचनानरों के नाम इस प्रकार हैं--- (1) इन्द्रध्वजविधान-महोत्सव-पंत्रिकां (वि. सं. 1821) (2) शानानन्द श्रायकाचार (3) चर्चा-संग्रह इसमे कों सन्देह नहीं है कि पण्डितप्रवर टोडरमलगी के निमित्त से ही ब्रह्मचा री रायमल्लजी साहित्यिक रचना में प्रदृत्त हुए | उनके विचार और इनका जीवन अत्यन्त सन्तुलित था, यह शलूफ हमें इनकी रचनाओं में व्याप्त सिछ्ती है । “चर्चा-संग्रह” के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि तस्‍्व-विचार तथा तत्व-चर्चा करना ही इनका मुख्य ध्येय थां। डॉ. भारिल्क के शब्दो गे पण्डिते टोडरमल के अद्वितीय सहयोगी भे--साधर्मी भाई #. रायमछ, जिन्होंने अपना जीवन तत्त्वाभ्यास और तत्वप्रचार के लिए ही समपित कर दिया था।* “इन्द्रध्यज विधान महोत्सव-पत्रिका” की रचना माधः चुषल 10, वि. सं 1821 में हुई थी । व्र. प. रायमल्लजी के शब्दं में “आत महु सुदि 10 संवत 1821 अठारा से इकबीस के सालि इन्द्रध्यंज पूजा का स्थापन हुआ 1. सो देस- 1 राममल्ल साधर्मीं एक, धरम संया सहित विवेक । . सी नाना विधि प्रेरक भयो, तब यहु उत्तम कारण थर्यों ॥ दे. त्रस्धिस्ार, ढि. मं पृ. 637 कथा ˆ ` _ ` ` | +-सम्मयाग्रच लिंक अशस्ति 2. हो, हुंकमचन्द भारिलल.: पंडित टोहरमब़ : व्यक्तित्त और .कत रब, पू. 66 प्र उद्धृत | ৃ ग |




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