शीलपाहुड़ प्रवचन | Sheelpahud Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छन्द ३ ७
के बारेमे बहुत कुछ वणन बीचमे क्रिया जाता है, पर उस
विशाल वर्णनके बाद फिर प्रयोजनकी बात थोड़े शब्दोमे कही
जाती है । तो ऐसे ही. मोक्षमागंके भ्रष्गगमे बहुत कुछ वर्सनके
बाद श्रन्तमे श्रात्माके शील स्वभावका वर्णन किया गया है ।
ग्रब इस शोल प्रौर गुणोके विषथमे प्रागे विशेष विवरण
चलेगा 1
दुक््ेणोयदि राण रणं ऊण भावरा दक्ख ।
मावियमरई व जीवो विस्येपु विरज्जए दुकंखं ।३॥
(५) ज्ञानकी दुलंमता व ज्ञाचसे मो श्रधिक ज्ञानभावना
की दुर्लभता प्रथम बान तो यंह है कि ज्ञानका पाना हो
बड कठिन है । संसारमे कितने जीव है ? मनुष्योकी सश्यातो
सभी गतिके जीवोसे थोडी है । कुछ सनुष्योको छोडकर, कुख
, ऊेचे देवोको छोडकर प्राय सर्वत्र श्रज्ञानदशा छायी है, भले
ही कुछ सम्यग्हष्टि सभी गतियोमे होते है, मगर ज्ञानकी विशे-
पता सब जगह नहीं मिलती । देखो यह कभी एकेन्द्रिय था तो
उसका कितनासा ज्ञान ? दोइन्द्रिय हुम्रा, तीनइन्द्रिप, चार-
इन्द्रिय, पचि इन्द्रिय वाला हृप्रा, श्रसन्नो रहा तो वहां किनना
सा ज्ञान ? मनुष्योमे.मो कोन फितना ज्ञान रखती है, ज्ञानकी
प्राप्ति बहुत ही दुलेभ है । इसके विषयमे तो कहा है--'घन
कन कचन राजसुख, सबहि सुलभ कर जान । घन हो, स्वर
हो, चाँदो हो, वैभव हो, राजपाट हो, कुछ भी श्रन्थ बात हो
4 {कमव क्न भ भ ~
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