गेरुआ बाबा | Geruaa Baba
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
111
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गेर्धा वावा ` १५
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बाबा जाकर बैठे तो उसने पूडा--“्ापने फोकनी से बात
चीत की है ?”
गे०--'हाँ, जो कुछ पूछना था,सो तो पूछ लिया !”'
बु०--तो जवाब पाकर झापने उसको कैसा समा है ?”
गे०--ुभते वो छोड़ी बेकसूर मालूम हुई !”
बु०--'तब गहने से बह हीरा केसे गिर कर उसकी कोटर
में जा पड़ा ?'
गे०--“थ्रापको हीरा की बात पहले से डी साउम है क्या”
बुल--“मैं इसी हीरे की बात नहीं साहब यहुतसी बार
न
जानती है। किसी से कहा नहीं, आपको गंसीर आदमी देख
कर कहती हूँ । ब्योक्ति यह खव बातें पहले से जाहिर हो जानें
यर् अखल चोर खबरदार हो जायगा झोर माल भी न सिलेगा
उस सनीचर की रात वड़ी अयाचनी थी ¡ फंकनी उस अँघेरे
में किसी मद से बात करती थी । जरा दूर थी, इससे में सब
बातें तो नहीं समझ सकी लेकिन मद की. दो- एक वाठ सुनने
में आइ । चह कहता रहा कि प्यारी 'की कौन खिड़की' बगीचे
की ओर खुली है ।'
इसके वाद कुछ देर तक बुढ़िया चुप रदी। गेरुझा बाबा
ने कहा--''सब बातें कह जाव, रुकती क्यों हो ?”
बुदिया वोली- “उसके बाद की वतं तो समभ मे, ठीक
नहीं आई' । लेकिन एक श्र मामला में बतलाती हूँ, जिससे
| मालूम होगा कि दोनो किस गरज् से वहां अँधेरे में फल थे चह
शक
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