चक्र भेद | Chakra Bhed

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Chakra Bhed by गोपालराम गहमर - Gopalram गहमर

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्‍- <9 चक्र भेद है ३१ उसी सच्चो बात के कहने से हमको लिपाहियाों ने हचालात में बन्द कर र्यि(। ऊहने लगे मूठो बात कहो तो छोड देंगे ।” पू०--तो हयालात से कैसे निकल आये बावा । क्‍या झूठ बोल के छुट्टी पाये हो - “तुम ऐसी बात क्यों कहती हो बेटी ! झुझे तो आज पाच घरस से तुम देखती हो। में गाजा भाग खाता हे । दम लगा कर ही दिन विताता हूँ लेकिन मैं भूठ कधो नहीं बोलता न फंभी बोलुगा | पुलीस जब किसी मामले में प्रपसधों को नही पाती तब भैरे ऊपर चाप यद्दाता है. यह वात सहो है लेकिन सायी दुनियां तो मुझे पागल कहा करतो है । मेरे पेन पागल का पुलीस कर ही फ्या सकतो है। न हम उसके किलौ काम के ह॑ न मुट्ठी ही गएम कर खकते हैं. उसकी । पू०--तय छुट्टी कैले मिली बाबा तुमको १ , “यह तो मेय मन है। जब मैंने चाहा कि निऊज्न जाऊँ फथ निकल आया ।? घपू०-भरे तब तो ठुमने सथ चौपट कर दिया बाया 1 जप तुम भाग आये दो ठव हाकिम सुमझो विश्वासी नही समसंगें | न तुम्दाये बात पर विश्वास करेंगे। नतोजा यही होगा कि घमारे मालिक को फांसी हो जायगो। यह तुमने कया कर रिया ? “नही में अपने मन से भाग कर नही आया हू बेटी! चह्ा तो सुझे मौज था। गाजा भाग को भी मिल जाता रहा 1? “तय्आये कैसे !” , ल०--आया हूं मैं प्रताप फो बचाने के घास्ते 1 | ' पू०-तो जो कुछ छुमने, बयान किया है यावा | उसके




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