गेरुआ बाबा | Geruaa Baba

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Geruaa Baba by गोपालराम गहमर - Gopalram गहमर

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गेर्धा वावा ` १५ 0 बाबा जाकर बैठे तो उसने पूडा--“्ापने फोकनी से बात चीत की है ?” गे०--'हाँ, जो कुछ पूछना था,सो तो पूछ लिया !”' बु०--तो जवाब पाकर झापने उसको कैसा समा है ?” गे०--ुभते वो छोड़ी बेकसूर मालूम हुई !” बु०--'तब गहने से बह हीरा केसे गिर कर उसकी कोटर में जा पड़ा ?' गे०--“थ्रापको हीरा की बात पहले से डी साउम है क्या” बुल--“मैं इसी हीरे की बात नहीं साहब यहुतसी बार न जानती है। किसी से कहा नहीं, आपको गंसीर आदमी देख कर कहती हूँ । ब्योक्ति यह खव बातें पहले से जाहिर हो जानें यर्‌ अखल चोर खबरदार हो जायगा झोर माल भी न सिलेगा उस सनीचर की रात वड़ी अयाचनी थी ¡ फंकनी उस अँघेरे में किसी मद से बात करती थी । जरा दूर थी, इससे में सब बातें तो नहीं समझ सकी लेकिन मद की. दो- एक वाठ सुनने में आइ । चह कहता रहा कि प्यारी 'की कौन खिड़की' बगीचे की ओर खुली है ।' इसके वाद कुछ देर तक बुढ़िया चुप रदी। गेरुझा बाबा ने कहा--''सब बातें कह जाव, रुकती क्यों हो ?” बुदिया वोली- “उसके बाद की वतं तो समभ मे, ठीक नहीं आई' । लेकिन एक श्र मामला में बतलाती हूँ, जिससे | मालूम होगा कि दोनो किस गरज्‌ से वहां अँधेरे में फल थे चह शक




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