गरजन की एक शाम | Garzan Ki Ek Sham

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Garzan Ki Ek Sham by कृष्णचन्द्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिंडारे ५ ७ न मिश्रौ तोल्कर दे रहीश्रौर तराजू फुप धणों के लिये उसके हाय में सटफता रद गया था । तहु्तीतदार साहब नें दिनभर चीड के पेड़ों के एक रेमे भुंड के नीचे श्रपना दरवार सगाया। यह रययं एक देंत की फुरसी पर वटे प्रर निरदावर, फानूनगों श्रीर मुख्यो-मुसद्दों उनके पंरों में पृथ्यी पर । इस प्रकार हाफिमों के दरवार में सागरा फी प्रजा फी पेणी हुई । बेचारे ब्राह्मण भय के मारे मरे जा रहे थे। जिस प्रफार पर मनुष्य परमात्मा से भयभीत रहता है श्रीर उसकी उचित-श्रमुदिति श्रारधना एवं चापतूसौ मं तत्लीन रटत है, उसी प्रफार थे तहसीलदार कै प्रागे हूय यपे पडे ये श्रौर नृन्पी-सूत्रदिे णौ सूधामद एर रहै ये। मुन्दी प्रव्दुरहमान ने श्रपनी सौतदियाना दाढ़ी पर हाथ फेर्ते हुए फहा, “श्रये हरामसादो, ये घास फे गट्ठे ध्रभौ तक नहीं पटच ? राजाराम ब्राह्मण हाय जोड़फर बोला, “हुजूर, में रययं घमी घास के चार गदूठे चाघकर साया हूं । मुन्णौ धव्दुरंद्रमान ने गरजफर फहा, 'फूजूर फे यच्चे { चार गरणे से या होता द?“ श्ीर फिर तहुतोलदार की ध्ोर मुड़फर चोला--“हुजूर ! पर्पों से दिसो श्रफूसर ने एस प्रान्त या दौरा नहीं फ़िपा--प्रव देपिये इसका परियाम--दुजूर के त सश लने पर धात फे फेव्स चार गरठे पेश फिये जाति हैं शरीर मुर्यों एक भी नहीं । यहां के लोग फितने स्पेच्दाचारी हो गये है !” सम्यबरदार ने दरते-दरते निधेदन छिपा, हुूर, मुग्यी स्रहूय, प ब्राह्मणों फा गांव है। टुम न मुरियों पातते हूँ न पति हूं। भोर फोर दूतस गांव भी समीय नद्य... घसीडा राम पेशफार नें चित्साफर पद, “यह दत्ता श्रद्धस पया प्या फरता है ? चांव दो इसे , पेड़ से घोर सगाय्ों पोड़े, तारिप झ्िकफारियों से यात फरने शा शिप्टाचार घा पाय ह .




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