महाभारतकालीन समाज | Mahabharatakalin Samaj

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : महाभारतकालीन समाज  - Mahabharatakalin Samaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुखमय भट्टाचार्य - Sukhmay Bhattacharya

Add Infomation AboutSukhmay Bhattacharya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
लोग ही नहीं थे । उनमे शक, पह्नव, दरद, कक, हण इत्यादि अनेक मध्य एशिया के लोग भी थे जो न केवल समय-समय पर इस देश मे आकर बस भी जाते थे, वे अपने देशो से भारत के साथ बराबर व्यापारिक और सास्कृतिक सबघ कायम करने के किए प्रयत्नशील भी रहते थे । स्मृतिकार इन विदेशियो के उन आचार- विचारो से जिनका मारतीय आदर्शो से मेर नही खाता था असतुष्ट होकर उनकी भर्त्सना करते थे । महाभारत मे भी इनकी कोई विशेष प्रासा नही को गई है पर ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से इस बात मे सन्देह नहीं कि भारतीय हिन्दू समाज ने जो रूढिगत होता जा रहा था इन आगतुको से एक नई सस्कृति ओर एक नया दृष्टिकोण पाया जिसकी स्पष्ट छाप हम मारतीय जीवन और कला के अनेक अगो पर स्पष्ट रूप से देख सकते है। इससे मुझे जरा मी सन्देह नही है कि महामारत सबघी अनेक विवादग्रस्त प्ररनो के बावजूद प० सुखमय भट्टाचार्य ने महाभारतकालीन समाज का जो चित्र हमारे सामने रखा है वह्‌ विद्त्तापुणं है । इससे महामारत सम्न्रन्धी अध्ययन को प्रोत्साहन मिलेगा ऐसी आशा की जा सकती है। इस ग्रथ की अनुवादक श्रीमती पुष्पा जैन के सवधघ मे भी कुछ कहना अनुचित नहोगा। उन्होंने ऐसी सरल और सुबोध हिन्दी मे इस बगला पुस्तक का अनुवाद किया है कि इसके पढने वाले को मूलग्रथ की भाषा का आनद आ जाता है। प्रिंस आफ वेल्स म्यूजियम, --(डॉ०) सोतीचन्द बम्वई। ३१-५-१९६६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now