नेत्र दान | Netra Dan

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Netra Dan by श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी - Shriramvriksh Benipuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ सिहल-द्वीप का एक संघाराम । रात काफी बीत चुको है। मक्तों की भीड़ छंट गई है । संघाराम के मभ्य-भाग में स्थित भिश्च महेन्द्र का विद्वार । महेन्द्र अपने आसन पर अद्धप्यानावस्थित अवस्था में बेठे हैं । उनसे थोड़ी दूर पर भिश्ुणी संघमित्रा बेठी है । विहार के एक कोने म॑ एक दीप-दंड पर शन-वत्तिका दीप जल रहा है । उसकी कुछ बत्तियाँ बुक चुकी हैं । राष्र की लौ मी धीरे-घीरे धीमी दोती जा रही है । महेन्द्र की पकें जरा दिलती हैं। संघमित्रा उनसे पूछती है-- ]




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