गैरहर्त हाउप्तमन एक परिचय | Gairahart Hauptaman Ek Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
83
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नहीं था, यह् हिम्मत केसे हुई कि उन पदाधिकारियों की उपेक्षा करकं
उन्होने एक नाटककार से हस्ताक्षर मागि? बेचेनी ग्रौर श्रनिश्चय के
उसक्षण मे विशालकाय हाउप्तमन ने पास खडी नाजुक-सी अपनी पत्नी
कीओर विवशतापूणे नेत्रो से देखा । पत्नी से प्रोत्साहनपूणं स्वीकृति
पा कर उन्होने एक कापी से जल्दी से एक पन्ना फाडा ओर उस पर
(मिखाएल क्रामर) 1416114६ ॥९५।4६९ से एक वाक्य लिख दिया :
।८(॥457 ।ऽ7 ९६।।७।०।५ । उन चौदहू-चौदह् वषं के बालकों को हाउप्तमन
ने बताया कि कला ही धर्म है ।
गेरहतं दाउप्तमन का जन्म १४५ नवम्बर, १८६२ को हुआ था और
इस समय वे लगभग ८० वर्ष के भव्य वृद्ध थे, हालाँकि यह काल
उन की ख्याति का शिखर न था । जब १९६१२ में उन्हें 'दि वीवर्स' के
लिए नोबल पुरस्कार मिला था, वे अपना पचासवां वषे पार कर श्राये
थे । सामाजिक संघर्ष के इस नाटक ने तथा दो-तीन अन्य नाटकों
ने हाउप्तमन को उन के जीवनकाल में ही प्रथम श्रेणी के नाटककार के
रूप में स्थापित कर दिया था । वे अपना सत्तरवाँ वर्ष भी पार कर
आये थे जब कि १९३२ में उन्होंने गेटे के बहुमान्य उत्तराधिकारी श्रौर
जर्मन साहित्यकारों के प्रतिनिधि के रूप में गेटे-शती का उद्घाटन करने
के लिए अमरीका की यात्रा की थी । लेकिन अब भाग्य ने उन के लिए
कुछ और ही रच रखा था । फ़रवरी १९४४ में शत्रु के विमानों द्वारा
उन्हें अ्रपने प्रिय ड्रेसडन का नाश देखना था (उस केवे प्रत्यक्ष-दर्शी
थे) और देखनी थी जरमनी की पराजय ओर सादइलीशिया प्रान्त का
उस से पाथक्य । हाउप्तमन ने साइलीशिया मे भ्रग्नेटनडॉफ स्थित
अपना मकान वीजनश्टादन त्यागने से इनकार कर दिया ओर
१३ बीते युग के एकमात्र अवशेष के रूप में ६ जून, १६४६ को वहीं उन की
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