गैरहर्त हाउप्तमन एक परिचय | Gairahart Hauptaman Ek Parichay

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Gairahart Hauptaman Ek Parichay  by रामानन्द - Ramanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नहीं था, यह्‌ हिम्मत केसे हुई कि उन पदाधिकारियों की उपेक्षा करकं उन्होने एक नाटककार से हस्ताक्षर मागि? बेचेनी ग्रौर श्रनिश्चय के उसक्षण मे विशालकाय हाउप्तमन ने पास खडी नाजुक-सी अपनी पत्नी कीओर विवशतापूणे नेत्रो से देखा । पत्नी से प्रोत्साहनपूणं स्वीकृति पा कर उन्होने एक कापी से जल्दी से एक पन्ना फाडा ओर उस पर (मिखाएल क्रामर) 1416114६ ॥९५।4६९ से एक वाक्य लिख दिया : ।८(॥457 ।ऽ7 ९६।।७।०।५ । उन चौदहू-चौदह्‌ वषं के बालकों को हाउप्तमन ने बताया कि कला ही धर्म है । गेरहतं दाउप्तमन का जन्म १४५ नवम्बर, १८६२ को हुआ था और इस समय वे लगभग ८० वर्ष के भव्य वृद्ध थे, हालाँकि यह काल उन की ख्याति का शिखर न था । जब १९६१२ में उन्हें 'दि वीवर्स' के लिए नोबल पुरस्कार मिला था, वे अपना पचासवां वषे पार कर श्राये थे । सामाजिक संघर्ष के इस नाटक ने तथा दो-तीन अन्य नाटकों ने हाउप्तमन को उन के जीवनकाल में ही प्रथम श्रेणी के नाटककार के रूप में स्थापित कर दिया था । वे अपना सत्तरवाँ वर्ष भी पार कर आये थे जब कि १९३२ में उन्होंने गेटे के बहुमान्य उत्तराधिकारी श्रौर जर्मन साहित्यकारों के प्रतिनिधि के रूप में गेटे-शती का उद्घाटन करने के लिए अमरीका की यात्रा की थी । लेकिन अब भाग्य ने उन के लिए कुछ और ही रच रखा था । फ़रवरी १९४४ में शत्रु के विमानों द्वारा उन्हें अ्रपने प्रिय ड्रेसडन का नाश देखना था (उस केवे प्रत्यक्ष-दर्शी थे) और देखनी थी जरमनी की पराजय ओर सादइलीशिया प्रान्त का उस से पाथक्य । हाउप्तमन ने साइलीशिया मे भ्रग्नेटनडॉफ स्थित अपना मकान वीजनश्टादन त्यागने से इनकार कर दिया ओर १३ बीते युग के एकमात्र अवशेष के रूप में ६ जून, १६४६ को वहीं उन की




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