सार्थवाह | Sarthavah

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Sarthavah by डॉ. मोतीचन्द्र - Dr. Moti Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका 'लाथवाइ' के रूप में श्री मती चन्द्ूजी मे मातृभाषा दिन्डी को भरष्यन्त रक्लाध.ीवं वस्तु मेंद को है । इस धिषप का अध्ययन उनकी मोक्षिक कहपना है। अजरेजी झथवा म्य किपो भाषा में भारतोय संस्कृति से सम्बन्धित इस मदरवपूण विषय पर कोई प्रम्थ भह जिला गया । निस्तंदरेद मंती चन्दन की लिखी हुई पहली पुस्तक भारतीय वेशमूषा, झोर प्रस्तुत 'साथवाद' पुस्तक का पढ़ने के लिये ही यदि कोई दिन्दी सीखे तो भी उसका परिश्रम सफल होगा । पुस्तक का विषय है--प्राचीन भारतीय ब्यापारी, उनकी यात्राए य विक्रय की वस्तुए्‌ ब्यापार के नियम, और पथ-पद्धति । इस सम्ब-ध की जो सामग्री वेदि युग से ज्ञेरं ९१वो शक्ती वक के भारतीय साहित्य (संस्कृत, पाली, प्राकृत श्रादिमे) यूनानों घोर रामरेशोप भोग लिंक दूत, चौनो याज्पों के दूत्तारत, एवं भारत य कक्षा में उपलब्ध है, उपर भनेक बिखरे हुए परमाणुप्री को जोड़कर लेखक ने साथवाह रूपो भव्य सुमेद का निर्माण हिया है जिसकी ऊ थी चोटी एर भारतीय साद शान का प्रखर सूयं तरता हु दिखाई पढ़ता दे धर उतको प्रस्फुटित किरण से सकर नए तथ्य प्रझाशित होकर पाठक के इृषिपय में भर जाते हैं। भारतीय संस्कृति का जा सर्वापीणु इतिहास स्वयं देशवादिधं। द्वारा अगले पचास वर्षों में लिखा जायगा उसकी सर्यी शाघार- शिचा मलतोचन्वरजो ने रखदीदहै। इस प्रन्थ का पढ़कर समर में झाता है कि ऐ तह लिक सामग्री के रत्न कहाँ डिपे हैं, नेक गुप्त प्रकट खाना से उन्हें प्राप्त करने के क्षिये भारत के नवोदित रेतविष्टातिक का कौन-सा सिद्धाष्डन लगाना चाहिए, ओर उस चखा से प्राप्त पुष्कख सामग्री को खेखन की क्षमता से किस प्रकार सूत रूप दिया जा सकता दे | पुस्तक पढ़ते-पढ़ते एश्चिमी र्नाकर शोर पूर्वों मदददधि के उसयार के देश शोर द्वीपों के साथ भारत के सम्बन्धी के कितने हो चित्र सामने भाने दरते हैं। दुरडी दश कुमार चरित में ताब्रकिप्ति के पास झाए हुए एक यूनानी पोत के नाविकननायक , कप्तान ) रामेषु का उत्क्षेख दे। कोन जानता था कि यह 'रामेषु' सीरिया की भाषा का शब्द दे जिसका झर्थ हे सुम्दर देताः ( राम न सुम्दर ; ईषु - इंसा , ? इंसाई षम के प्रचार के कारश्च यद६ नाम उत समय यवन नाविको में चल चुका था | गुप्तकाब में भारत की नौसेना के बड़े कुशल चैत्र से थे । रत्नायंवा की मेखक्ा से युक्त भारत भूमि की रक्षा भर विदेशी भ्वापार दुगा में वे पड़ थे। भतपब दण्डी ने किखा है कि बहुत सो नावों से घिरे हुए 'मद्गु' नामक भारय रोव, महुगु = कप्य मारनेवाला ससुत परो, भङ्करेजी खी-रक्ष ने यवन-पात का घेर कर धावा बल्ल दिया पृण २६६०० )। 'घाधेबाइ' शब्द में स्वयं उसके अथे की ब्याण्या हैं। झमरकोप के टीकाकार फोर स्वामी मे लिखा दै--'जा पूंजी दर ब्यापार करनेवाले पार्था का अगुसा दो वह साथ वाह हे ( पावन्‌ पथनद्‌ रतो वा पान्थान्‌ वहति सांशा अभर ३६1५८ ) | साथ का




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