मेघ चर्या | Megha Charya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ और केवल नान ह मौर परोक्ष म च्ुदश पूव मौर उससे -गून श्रुतज्ञान का समावेश है। इससे भी स्पष्टे है कि जो नानहै वहु जागम है । सवज्ञ सर्वदर्शी तीथक रो के हारा दिया गया उपदेश भी ज्ञान होने से आगम है । भगवती अनुयोग द्वार॑ आर स्थानाङ्घ चपरम भागम शन्न शास्त्र के अथ मे प्रयुक्त हुआ है । वहा पर प्रमाण के चार भेद किये गए हैं--प्रत्यक्ष अनुमान उपमान और आगम । आगम के भी लौक्कि और लोकोत्तर ये दो भेद क्ए गए हैं -लौकिक आगम भारत रामायण आदि और लोकोत्तर मागम सबज्ञ, सवदर्ों द्वारा प्रहपित आचाराग, सुव्कृताज्भ, समवायाद्धु, भगवती नाता आदि ह 1“ सोकात्तर मागम कै सूकत्तागम, अत्थागम भौर तदुभयागम य तीन भेद भी किये गय हैं ।** एक भय हृष्टि से आगम के तीन प्रकार और मिलते हैं--आत्मागम अनतरागम आर परम्परागम।१~ आगम के अधरूप और सुभ्रूप य दो प्रकार है । तीथकर प्रमु अथरूप आगम का उपदेश करते हैं अत अथरूप आगम तीथकरो का आत्मागम वहलाता है क्योकि वहु अर्थागम उनका स्वय काहै दूसरों स उदहोंने नहीं लिया है। क्तु वहीं मर्पागम गणघराने तीथवरों से प्राप्त किया हूं ! गणघर मौर तीथवर के बीच किसी तीसर ठ्यक्ति का व्यवधान नही हैं एतदथ गणघरो के लिए वह अर्थागम अनन्तरागम कहलाता है । कितु उस अर्थागम के आधार से स्वय गणधघर सुप्रुप स्चमा ८ भगवती ५।३।१६२ € मनुयोगद्वार १० स्यानाड्ू रेरे८ ररप ११ अनुयोगद्वार ४६, ५०, प° ६८ पुण्यविजय जी सम्पादित १२ अहवा आगमे तिविहे पण्णत्तं । त जहा-सुत्तागम य बत्यागमे य पदुभयागमे य 1 --भनुयोगढवार सूत्र ४७०, पृ० १७६ १३ नहवा भागमे तिविहे पण्णत्ते । त° मत्तागम भणवरागमे परपरागमे य। --अनुयोग्रदार सूर ४७० प° १७६




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