मेघ चर्या | Megha Charya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९
और केवल नान ह मौर परोक्ष म च्ुदश पूव मौर उससे -गून श्रुतज्ञान का
समावेश है। इससे भी स्पष्टे है कि जो नानहै वहु जागम है । सवज्ञ
सर्वदर्शी तीथक रो के हारा दिया गया उपदेश भी ज्ञान होने से आगम है ।
भगवती अनुयोग द्वार॑ आर स्थानाङ्घ चपरम भागम शन्न शास्त्र
के अथ मे प्रयुक्त हुआ है । वहा पर प्रमाण के चार भेद किये गए हैं--प्रत्यक्ष
अनुमान उपमान और आगम ।
आगम के भी लौक्कि और लोकोत्तर ये दो भेद क्ए गए हैं -लौकिक
आगम भारत रामायण आदि और लोकोत्तर मागम सबज्ञ, सवदर्ों द्वारा
प्रहपित आचाराग, सुव्कृताज्भ, समवायाद्धु, भगवती नाता आदि ह 1“
सोकात्तर मागम कै सूकत्तागम, अत्थागम भौर तदुभयागम य तीन भेद भी
किये गय हैं ।**
एक भय हृष्टि से आगम के तीन प्रकार और मिलते हैं--आत्मागम
अनतरागम आर परम्परागम।१~ आगम के अधरूप और सुभ्रूप य दो
प्रकार है । तीथकर प्रमु अथरूप आगम का उपदेश करते हैं अत अथरूप
आगम तीथकरो का आत्मागम वहलाता है क्योकि वहु अर्थागम उनका स्वय
काहै दूसरों स उदहोंने नहीं लिया है। क्तु वहीं मर्पागम गणघराने
तीथवरों से प्राप्त किया हूं ! गणघर मौर तीथवर के बीच किसी तीसर
ठ्यक्ति का व्यवधान नही हैं एतदथ गणघरो के लिए वह अर्थागम अनन्तरागम
कहलाता है । कितु उस अर्थागम के आधार से स्वय गणधघर सुप्रुप स्चमा
८ भगवती ५।३।१६२
€ मनुयोगद्वार
१० स्यानाड्ू रेरे८ ररप
११ अनुयोगद्वार ४६, ५०, प° ६८ पुण्यविजय जी सम्पादित
१२ अहवा आगमे तिविहे पण्णत्तं । त जहा-सुत्तागम य बत्यागमे य
पदुभयागमे य 1
--भनुयोगढवार सूत्र ४७०, पृ० १७६
१३ नहवा भागमे तिविहे पण्णत्ते । त° मत्तागम भणवरागमे
परपरागमे य। --अनुयोग्रदार सूर ४७० प° १७६
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