विशुद्धि मार्ग भाग - 2 | Bishudhi Marg Bhag Do

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : विशुद्धि मार्ग भाग - 2  - Bishudhi Marg Bhag Do

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

Add Infomation AboutBhikshu dharmrakshit

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उन मगधान्‌ अर्द त्‌ सम्क्‌-सम्बुद्ध को नमस्कार है (क वरां # १ विद्याद्धि सार्ग दूसरा भाग वारहवाँ परिच्छेद ऋदड्िविध-निर्देश व्र, जिन खाकरिक अभिक्ञाओं के अनुसार “यह समाधि-मावना अभिज्ञा के आनृशंस चाली दे कहा गया हैं, उन अभिन्ञाओं की प्राप्ति के लिये, चूँकि प्रथ्वीकसिण आदि में प्राप्त चतुर्थ ध्यानवालें योगी को योग करना चाहिये, ऐसे उसे वह समाधि-भावना आनृदांस-प्राप्त ओर स्थिरतर होगी । वह आनृशंस प्राप्त, स्थिरतर समाधि-भावनासे समन्नागत (= युक्त ) सुखपृतरंक ही प्रतत भावना को पूर्ण कर लेता है; इसलिये पहले अभिन्ञा का वर्णन प्रारम्भ करेंगे । भगवान्‌ नं चतुर्थं ध्यानकी समाधिको प्राप्त हुए कुछपुच्ों के लिये समाधि-भावना के आानूशंस बतलाने भोर जागे-आगे उत्तम-उसम धर्मोपदेश करने के लिए--'“'वह ऐसे एकाश्रचित्त, परिशुद्ध, स्वच्छ, मलरहित, क्लेशरह्ति, खदु हुए, कर्म करने के योग्य, स्थिरता-प्राप्त ऋद्धिविध के लिये खिंत को ले जाता है, झुकाता है, वह अनेक प्रकार के ऋद्धिविघ का अनुभव करता है, एक भी होकर बहुत होता है ।* आदि प्रकार से (१ 2) ऋषद्धिविध, ( २) दिव्यश्रोन्न, (३) संतोपर्थ ज्ञान, ( ४ ) पूर्वनिवासानुस्ख्ति ज्ञान, ( ५ ) प्राणियों की च्युति-उत्पत्ति में ज्ञान--इस प्रकार पाँच लंकिक नभिजायें कही गई हैं। वहाँ, 'एक भी होकर बहुत होता हेः आदि चरद्धि- विकुषण ( न प्राकृतिक वर्णं को त्यागने की क्रिया ) करने की इच्छावाले प्रारम्भिक योगी को अवदात कसिण तक भाठों कसिणगों में आठ-आठ समापत्तियों को उत्पन्न करके कसिण के अनुलोम से, कसिण के प्रतिलोम से, कसिण के भनुलोम और प्रतिठोम से, ध्यान के अनुछोम से, ध्यान के प्रतिलोम सर, ध्यान के अनुलोम शोर प्रतिलोम से, ध्यान को रोंघने (= उकत्करान्ति ) से, क्तिण को लाँघने से, ध्यान ओर कसिण को लॉँघने से, अड्ड के व्यवस्थापन से, आलम्बन के व्यवस्थापन स--दन चादर अकारे प्ते चित्त का भरी प्रकार दमन करना चहिये । कौनसा कक्चिण का जनुरोम है 1 - कौन-घा आरूम्बन का व्यवस्थापन है ? यहाँ भिक्षु पृथ्वी-कसिण में ध्यान को प्राप्त होता है, उसके पश्चात्‌ आप-कसिण में--ऐसे क्रमशः टो कसिर्णो में सो बार भी, जार बार भी, समापन होता है। यह कसिण का अजुलोम है। अवदात- कसिण से छक्र वैस षं प्रतिरोम के करम से समपन्न होना कसिण का प्रतिरोम हे । प्रष्वी. कसिण से लेकर अवदात कसिण तक, जोर अवदात कसिण से छेकर प्रथ्वी कसिण तक--ऐसे अजुलोम-प्रतिछोम के अनुसार बार-बार समापनन होना कसिण का अनुलोम और प्रतिठोम है! ४. दीष नि० १.२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now