प्रारंभिक रचनाएँ भाग - 3 | Prarambhik Rachnaen Bhag - 3

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Prarambhik Rachnaen Bhag - 3  by बच्चन - Bacchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ४ उसे पूरा विश्वास था कि बहूत्त जल्द श्रफशानिस्तानी श्रपनी गलती कं सम जार्यैगे श्मौर श्रमानृह्लाको ब्ुलाकर तछ्तपर बिटार्पेगे शौर उनके हुक्म को सानेंगे । पर दोनेवाला कुछ चर ही था । दिन वीततै गए । श्रज्ञमतुन को रोज्ञ उमर ग्रखवार लाकर सुनाता । पटने से यही मालूम होता कि मसानुल्ला की शक्ति दिन-दिन घटती ही जाती है । जहाँ श्रसानुल्ला क। हार का समाचार शज़मतुन सुनती रो पड़ती, उसे क्रोध दाजाता, उसका चहरा लाल दो जाता, वह दाँत पीसने लगती । श्रगर अज़मठुन के बंदर युवावस्था की शक्ति मौजूद होती तो क्या आश्चर्य था. यदि श्रज़मठुन स्वयं दथियार हाथ में लेकर दुश्मनों से लड़ने जाती श्र एक श्रफ़्शामिस्तानी जोन श्राफ़ श्राकं का उदाहरण उपस्थित करती ? अज़मतुन दिन-रात चिंता-मय रहने लगी । उमर अमावुल्ला के स्कूलों में बरसों पढ़ चुका था | इन स्कूलों में कोरी पढ़ाई ही नहीं होती थी बल्कि हर विद्यार्थी को यह सिखाया जाता था कि वह राष्ट्रीयता को अपने हृदय में सब से ऊँचा स्थान दे श्रौर देश की उन्नति के लिए; सदा प्रयल्शील रहे । सामाजिक छुरीतियाीं कों दूर करे शऔर मिथ्यांधविश्वासों के प्रतिकूल ' क्रति मचाए्‌। विद्यार्थियों करी हर कापी पर यह लिखा रहता था माद्रे च्रफ़गानिस्तान झपने हर बच्चे से यह उम्मीद रखती है कि वह उसके खतरों में दिलों जान से उसकी मदद करेगा ।” अपने गुलाम देश को तरह वहाँ यह नहीं कहा जाता था; कि बच्चे देश को संकटों में देखकर श्रपनी आँखों के सामने क्रितावों के पदं खींच लिया करें । श्रफ़गानिस्तान पर इस समय संकट झा गया था । उमर ने देखा कि माँ--स्रफगानिस्तान का झंचल चायं दर से खींचा जा रहा है, उसको दुर्दशा हो रही है, वह बिलख- बिलखकर रो रही है और श्राशापूणं नयनो से श्रपनै नवयुवकोौं कौ प्रा २




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