मणि - मंथन | Mani - Manthan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपोटुघात
प्रवयन परिवर्तनं का सवक साधन है । वीतराग वाणी के प्रति समर्पित आचारनिष्ठ ज्ञानीपुरुष
के स्वय स्फूर्ठ चिन्तन से निसृत यह वह अमृत हैं जो श्रोता को अजर-अमर बना देता है । यह
वह सजीवनी है जो मोह-मूरच्छिति आत्मा को सजग बनाती है । यह वह सूर्योदय है जो सुपुप्त चेतना
के जागरण का शखनाद करता है । यह वह कला है जो दिगु-भ्रमित मानद को सही दिशादोप
कर श्रद्धा जौ सकस पूर्वक उस ओर कदम वढाने का अप्रतिम साहस प्रदान करती है । किसी
चिन्तक ने ठीक ही कहा है- वक्ता श्त सहद्रेषुः अर्थात वक्ता लाखों मै एक मिरता है ।
सामान्यत सभी कलाएँ प्रयास साध्य होती है । प्रवचन देना धी एक कला है अते वह भी
प्रयास साध्य है किन्तु जीवन में सर्वागीण विकास उन्हीं कछाओं का होता हैं जिनके बीज सहज-संस्कार
के रूप में होते हैं । प्रस्तुत सग्रह एक ऐसे ही प्रवयनकार की अनमोल प्रसादी है जिनमे वक्तृत्व
के चीज सहज संस्कार के रूप में उपकब्ध होते हैं । ये प्रवचनकार हैं-प. पू प्रज्ञापुरुष आचार्यदेव
श्री जिनकांतिसागर सूरीस्रजी मे सा के प्रधान ऐिप्य प. पू महाप्रत प्रसिद्धबकता गणित श्रो
'मणिप्रभतागर जी भ. सा । जो केवि साधक व मनस्वी चिन्तक हैं 1
जीवन समस्याओं का पर है-ज्यों-ज्यों भौतिक साधन और सुविधाएँ बढती जाती हैं त्यॉ-त्यों
मानव का 'भटकाव और तनाव बढ़ता जाता है । सुख शान्ति को पाने का बढ जितना अधिक
प्रयास करता है उतनी ही अधिक वे उससे दूर होती जाती है। इसका मूल कारण है-अर्सपम.....बषिक
सुखो की आसक्ति । जवं तक मन दिपयों में भटकता रहेगा इन्द्रियां विपयों की ओर दौडती रहेगी
आत्मसपम की बात असमद है । विना आत्मसयष के उस सुख और शान्ति की उपलब्धि कल्पनामान्र
है जिसके माद में मानव सब कुछ होते हुए भी निरन्तर रिक्तता का अनुभव करता है । असन्तोप
और आतदृप्ति की आग में जलता रहता है ।
इमं सवका समाधान है-शान्ति और सुख की सच्ची राह चींपने दाल महापुरुष का मार्गदर्शन |
ुपुत्त चेतना को जगाने वाली साधक की सत्प्ेगगा । जीवन के छश्य का निर्पारण करने घांठी
ज्ञास पुरुष की वापी ।
प्रतत प्रवचन वास्तव मे मार्गदर्शन, प्रज्ञा जागरण ओर ल्य का निर्पारण के सवत प सफल
प्रयोजक हैं जो हमारे अस्तित्व को पृथक ही नहीं करते अपितु उसे सर्वो्पारि महत्व देने को प्रेपिति
करते हैं ।
सापना के द्वारा स्वप को उपलब्ध करना यहीं जीवन का सर्वश्रेष्ठ उपलम्य और प्राप्य है।
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