अंतहीन - अंत | Antahin - Ant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रारंभ [ हे
~~~
शोभा--तो जल्दी करो । मै सब प्रयत्न कर चुकी । पार्थना, यरनु-
रोच, याचना, सव व्यथं गये । तुम्हारा क्या विश्वास है कुछ
प्रसर पडङ्गा ?
देवेद्र-विश्वास तो हे । में तो नाटककार हूँ । में समभता हूँ नाटक
म सव से बड़ी शक्ति ह । कविता, उपन्यास, कहानी से जो
नहीं हो सकता वह नाटक से दो सकता है ।
शोभा-अघ( घबराती हुई ) मुभे कुच भी नहीं मालूम । मे कुल जानना
भी नहीं चाहती । च्रे मोहन, क्या तुम लोग मुभे चाय
नहीं पिलाओगे ?
मोहन-( त्रश्च से) चाय, चयतो आपने अभी पी हे !
शोभा- कहा, कीं भी तो नीं |
मोहन--पएक घंटा भी नहीं इुआआ, अभी बावृज्ी के साथ |
शोभा--( इधर उधर देखती हुई ) अच्छा, मेने चाय पी ली ! हो कुछ
कुछ मालूम तो होता है । अच्छा जाओ, देखो अंदर कोई न
आने पावे ।
मोहन--बहुत झ्रच्छा, क्या आपकी तबीअत खराब है कुछ ?
शोभा--(घमल कर) मेरी, मेरी तवीच्चत कथो खराब होती ? पागल,
हों देखो, जमुना अभी नहीं आईं, अच्छा जाओ ।
( मोहन जाता हे )
देवेंद्र-मालूम होता है श्रापकी मानसिक श्रशाति बहुत है ?
शोभा--हाँ देवेंद्र बाबू, मेरा जीवन भार हो गया है । यदि यही
अवस्था रही तो मुभे देख पड़ता हे भें मर जाऊँगी ।
देवेद्र-जद्दी दी हम खेल करने वाले हैं । बस, यही अन्तिम बाण
हे मुभे विश्वास है श्रापकी कामना परौ होगी । (नाटकू दिखाता
हुआ ) यह् है । रूपङुमार का अभिनय संदर होगा।
शोभा-जमुना का भी, ठीक है। च्छा, म जाती ह मेरी तबीश्रत
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