अंतहीन - अंत | Antahin - Ant

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Antahin - Ant by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारंभ [ हे ~~~ शोभा--तो जल्दी करो । मै सब प्रयत्न कर चुकी । पार्थना, यरनु- रोच, याचना, सव व्यथं गये । तुम्हारा क्या विश्वास है कुछ प्रसर पडङ्गा ? देवेद्र-विश्वास तो हे । में तो नाटककार हूँ । में समभता हूँ नाटक म सव से बड़ी शक्ति ह । कविता, उपन्यास, कहानी से जो नहीं हो सकता वह नाटक से दो सकता है । शोभा-अघ( घबराती हुई ) मुभे कुच भी नहीं मालूम । मे कुल जानना भी नहीं चाहती । च्रे मोहन, क्या तुम लोग मुभे चाय नहीं पिलाओगे ? मोहन-( त्रश्च से) चाय, चयतो आपने अभी पी हे ! शोभा- कहा, कीं भी तो नीं | मोहन--पएक घंटा भी नहीं इुआआ, अभी बावृज्ी के साथ | शोभा--( इधर उधर देखती हुई ) अच्छा, मेने चाय पी ली ! हो कुछ कुछ मालूम तो होता है । अच्छा जाओ, देखो अंदर कोई न आने पावे । मोहन--बहुत झ्रच्छा, क्या आपकी तबीअत खराब है कुछ ? शोभा--(घमल कर) मेरी, मेरी तवीच्चत कथो खराब होती ? पागल, हों देखो, जमुना अभी नहीं आईं, अच्छा जाओ । ( मोहन जाता हे ) देवेंद्र-मालूम होता है श्रापकी मानसिक श्रशाति बहुत है ? शोभा--हाँ देवेंद्र बाबू, मेरा जीवन भार हो गया है । यदि यही अवस्था रही तो मुभे देख पड़ता हे भें मर जाऊँगी । देवेद्र-जद्दी दी हम खेल करने वाले हैं । बस, यही अन्तिम बाण हे मुभे विश्वास है श्रापकी कामना परौ होगी । (नाटकू दिखाता हुआ ) यह्‌ है । रूपङुमार का अभिनय संदर होगा। शोभा-जमुना का भी, ठीक है। च्छा, म जाती ह मेरी तबीश्रत




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