जैन दर्शन और प्रमाण शास्त्र परिशीलन | Jaindarshan Aur Praman Shashtra Parishilan

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Jaindarshan Aur Praman Shashtra Parishilan by डॉ.दरबारी लाल कोठिया -dr.darbaari lal kothiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# {द 54 4“ थ १ =. जद न य न गई दि ष ~ १२ विशद ग्ररतावनाओमें डॉ. कोठिपाने जेन प्रमाणयस्वङे श्रयः समो पिपयो- का विवेषन वर दिया है, जिले प्रस्तुत प्रस्पमें समाहित डिया गया है । १०, प्रस्तुत ग्रस्य--जैनदशंन भौर म्मागदास्त्र परिशीलन' में दॉ. कोठिपाकी उपयक छामग्र युभ्पवत्यित स्ममे समुपगम्य ६1 दत धन्यक्ो एक सदुमूत विदेषता पहु है कि इसमें लेके माव, मापा बौर प्रतिषादनतंलो मूलस्पमे गुरक्षित है। एक यहीं विशेषता यह भो दै दिः इव सम्पूणं घामपोका रेष ने स्वयं हो पुनरावछोकन, संशोधन, संवर्धन आर प्रकाशनपर्यसत आधोपान्त निरो्ण शिया। ऐसा सौमार्य बहुत बड़े युपोगसे हो सम्मव होता है। इससे एक बढ़ा लाम यद होगा कि डॉ. कोठियाफे कृतित्वका एक स्पष्ट बित्र पाठक र्दर्प निर्मित कर सहेंगे। ११. इस प्रत्यमें जितनी सामप्रो समाहित हो सको है, उससे लगमग दो गुनी सामप्रोमभोभोरदै, निष्का संयोजन बोर प्रकाशन हमारी प्रिकल्यना- योजनामें है। १२. प्रस्तुत प्रनय जेन विद्याको विभिन छासा-प्रधाधाओं के अध्ययन -अनुसरघानके प्रति देशनविदेशमें बड़ रहो अभिरुधिके अनुरूप एक ऐसे सत्दर्भ-पर्थका कार्य करेगा, जिसमें-ी अनेक छोष-उपाधियोंकि लिए विपयनदयन, सर्दर्भ-सा मग्री के बाकलने मोर उसके तुलनारमक एवं विदेपणात्मक विवेयनकों विशिष्ट दृष्टि मौर प्रचुर मात्रामि अनुसरपानपूर्ण सामपो एक शाय उपलब्प हो सकेगो । शो. कोटिपाको ध्य नयोनतम तिके सन्दर्भे इतना कटने बाद उनके वपक्तितके विपपमें संशेपमे इंगित करनेका मोह संवरण करना हमारे लिए सम्भव नदी ६। मध्यप्रदेशङे पावन तों निपनायिरि' को पुम्यभूमिमें जनमें बालककों काशोके गंगातट तककी यात्रा उनके भौतिक आर झाध्यात्मिक विकांसकी दोहरी यात्रा है। विन्ध्याकी वोह परतोके शेतोंमें तिरो वोननेवाखा बालक बोद्धिक विकामके उन्नत सुमेदकों सर्वोन्च दधिसर तक पहुंच सकता है-इसरा जोवस्त प्रतीक हैं स्यायाचायं दो. पर्डित दरवारीलाल कोठिया। उदोयमान अमांवप्रस्त प्रतिमाओंके लिए उनसे बड़ा प्रेरणा-दोप कोन हो सकता है ? *नैनागिरिसे पंगातट' धोर्पेक उनके जीवनके कतिपय प्रेरक कथा-प्रसंगों की मैंने आ्ञाकछित किया है, जिसको पाण्डुलिपि उनके ६९वें वरपें-प्रवेशपर काशीमें तीपंकर पाइवंको जस्मभूमिपर आयोजित समारोहमें उन्हें समपरित की थी। आया है वहूं शोघ्न प्रकारामें आापेगी । उसके आमुखके बु अंध दष प्रकारै ० “काशीसे नैनाधिरकी यात्रा मुदिङणते वौवो धष्टेकी है 1 १० यजे सवेरे फार एषसतरेस पको । रात १० बजे अटनो पहुंचे ओर थोड़ो देरमे विलासपुर-भोपाल एक्मप्रेसमें जा वैडे। भोर होति-होते सागर मोर फिर छतरपुर बसमें बैठे तो मरडा या दरपतषुर्‌ दहते हृद दो पष्ठ नैनागिर ॥




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