काव्य कल्पद्रुम भाग 2 | Kavya Kalpdrum Bhag 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kavya Kalpdrum Bhag 2 by कन्हैयालाल पोद्दार - Kanhaiyalal Poddar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कन्हैयालाल पोद्दार - Kanhaiyalal Poddar

Add Infomation AboutKanhaiyalal Poddar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ९ ) हास-बिलाख केलिरत होकर पिया कुमुदिनी सड प्रसड़-+ किया जागरण खारी निशि मं अतः शिथिल हूये सब अङ्ग । सोने की इच्छा करके श्रव प्रात समय अति भमित स-तन्द्र- मानो पश्चिम दिशा अंक में जाकर गिरता ई यह चन्द्रः | प्रभात सें चन्द्रमा पश्चिम दिशा को क्यों चला जाता है, इसका कारण हमारे विचार में तो यह है कि चन्द्रमा ने अपनी प्रिया मोदिनी के साथ हासविरास के प्रसंग में सारी रात जागरण किया है । अतः सर्वाङ्ग शिथिरू हो जाने के कारण अब सोकर कुछ विश्राम छेने के लिये अछसित हो कर ऑघता हुआ यह चन्द्रमा प्रातःकार अपनी दूसरी नायिका पश्चिम दिक्षा की गोद्‌ मँ जाकर गिरता है । यहां सोने की इच्छा से चन्द्रमा के पश्चिम दिशा को जाने की सम्भावना की गई है अतः इस उक्ति वैचित्य सें उप्प्रेक्षा अछक्लार है । रा्नि-विकासिनी कुमोदिनी प्रभात में सुच जाती है । इसपर देखिये श्री हषं का उक्ति-वैचिन्य- कलिकामय निज-नेत्र कुमुदनी स्वय मूंद लेती है प्रात , देते इसे दोष, जब करती रवि की ओर न दृष्टिनिपात । किन्तु अष्रूयपश्या होतीं चप-रमणी यह है-प्रख्यात तो नक्षत्र राज की राणी यह क्या है न शुवन विख्यात । १ रात्रि में चन्द्रमा के प्रकाश से कुमुदिनी प्रफुछित हो जाती है इसलिये कविसमाज में कुमुदिनि को चन्द्रमा की नायिका मानी जाती है । २ शिशुपाछ वध के इलोक ११1१२ का यह भावानुवाद है । ३ नैषधीयचरितं के ५१।५५ इरोक का यह भावानुवाद है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now